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तत्वज्ञान

tatvaj~naan

अनुवाद : एम. जी. वेंकटकृष्णन

तिरुवल्लुवर

तिरुवल्लुवर

तत्वज्ञान

तिरुवल्लुवर

और अधिकतिरुवल्लुवर

    351

    मिथ्या में जब सत्य का, होता भ्रम से भान।

    देता है भव-दुःख को, भ्रममूलक वह ज्ञान।

    352

    मोह-मुक्त हो पा गए, निर्मल तत्वज्ञान।

    भव-तम को वह दूर कर, दे आनन्द महान॥

    353

    जिसने संशय-मुक्त हो, पाया ज्ञान-प्रदीप।

    उसको पृथ्वी से अधिक, रहता मोक्ष समीप॥

    354

    वशीभूत मन हो गया, हुई धारणा सिद्ध।

    फिर भी तत्वज्ञान बिन, फल होगा नहिं सिद्ध॥

    355

    किसी तरह भी क्यों नहीं, भासे अमुक पदार्थ।

    तथ्य-बोध उस वस्तु का, जानो ज्ञान पथार्थ॥

    356

    जिसने पाया श्रवण से, यहीं तत्व का ज्ञान।

    मोक्ष-मार्ग में अग्रसर, होता वह धीमान॥

    357

    उपदेशों को मनन कर, सत्य-बोध हो जाय।

    पुनर्जन्म की तो उन्हें, चिन्ता नहिं रह जाय॥

    358

    जन्म-मूल अज्ञान है, उसके निवारणार्थ।

    मोक्ष-मूल परमार्थ का, दर्शन ज्ञान पथार्थ॥

    359

    जगदाश्रय को समझ यदि, बनो स्वयं निर्लिप्त।

    नाशक भावी दुःख सब, करें कभी नहिं लिप्त॥

    360

    काम क्रोध औ’ मोह का हो नाम का योग।

    तीनों के मिटते, मिटे, कर्म-फलों का रोग॥

    स्रोत :
    • पुस्तक : तिरुक्कुरल : भाग 1 - धर्म-कांड
    • रचनाकार : तिरुवल्लुवर

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