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तातियाना का पत्र

tatiyana ka patr

अलेक्सांद्र पूश्किन

अलेक्सांद्र पूश्किन

तातियाना का पत्र

अलेक्सांद्र पूश्किन

और अधिकअलेक्सांद्र पूश्किन

    अब जब मैं यह पत्र तुम्हें लिखने बैठी हूँ

    सब कह दूँगी, और तुम्हें अब आज़ादी है।

    मुझे करो तुम घृणा, मुझे दंडित करने को,

    नहीं जानती, इससे बढ़कर क्या हो सकता।

    पर यदि मेरे लिए तुम्हारे अंदर करुणा

    का कोई कण कहीं शेष है, तो तुम मुझको

    नि:सहाय, एकाकी छोड़ नहीं जाओगे।

    तुम मेरा विश्वास करोगे? —पहले मैंने

    यह सोचा था, एक शब्द भी नहीं कहूँगी।

    यदि में ऐसा कर सकती तो मेरी लाज

    ढकी रह जाती, कौन मुझे अपराधी कहता

    देख तुम्हें यदि क्षण भर लेती, या सुन लेती

    तुमको औरों से बतियाते, या दो बातें

    ख़ुद कर लेती हफ़्ते में जब एक बार तुम

    आते मेरे गाँव, तुम्हीं में ध्यान रमाए

    रात काटती, दिवस बिताती, बाट जोहती,

    जब तक तुम अगले हफ़्ते फिर गाँव आते।

    मिलनसार तुम नहीं, यहाँ पर कुछ कहते हैं,

    गाँवों का एकांत नहीं तुमको भाता है।

    हमें दिखावा करना आता नहीं, तुम्हें, पर,

    यहाँ देखकर सदा ख़ुशी हमको होती थी।

    तुम क्यों आए? और हमारे पास किसलिए?

    इस अनजानी, भूली-बिसरी-सी कुटिया में

    पड़ी अकेली मैं जानती तुम्हें कभी भी,

    नहीं कभी भी विरह-वेदना, जो तुमने दी।

    मृदुल भावनाएँ सब मेरी सोती रहतीं,

    मन मेरा भोलेपन का धन सेता रहता,

    —इस प्रकार से दिवस बिताते शायद ऐसा

    दिन भी आता, कोई पति मुझको मिल जाता

    मेरे मन का, और उसी की मैं बन जाती

    प्रिय परिणीता, और किसी दिन बड़े मान से,

    बड़े गाँव से माता बनती कोमल-पावन।

    और उसी की— नहीं कभी भी, नहीं किसी भी

    अन्य पुरुष को मैं अपने को अर्पित करती।

    परम पिता परमेश्वर की ऐसी इच्छा थी,

    मेरा भाग्य पूर्व-निश्चित था —मैं तेरी हूँ।

    मेरे जीवन का सारा अतीत आश्वासन-

    सा देता था कि हम मिलेंगे, साथ बँधेंगे,

    परमेश्वर ने इसीलिए तुझको भेजा था,

    तू मुझको देखे, अपनाए, और मरण की

    अंतिम शय्या तक तू मेरा संरक्षक हो।

    तू अक्सर मेरे सपनों मे भी आता था,

    प्रिय लगता था, गो जानती थी मैं तुझको,

    बहुत दिनों से तेरे स्वर से मेरे तन की

    शिरा-शिरा झंकृत होती थी, तेरी आँखें

    मुझे लुभाती, मंत्रमुग्ध मुझको करती थी,

    लेकिन यह समझ मैं सपना देख रही थी।

    जब तू आता था सपना सच हो जाता था,

    मैं पहचान तुझे लेती थी, मेरे तन में

    बिजली कौंध उठा करती थी, और ठिठककर

    जहाँ की तहाँ खड़ी रहा करती थी सकुचा,

    मेरा दिल मुझसे कहता था, वह पहुँचा।”

    इसमें कुछ भी झूठ नहीं, जैसे पहले के

    विश्वासी सूने में आवाज़ें सुनते थे,

    वैसे ही मैं तेरे शब्द सुना करती थी—

    तुझे सुना करती थी उन नीरव घड़ियों में

    जबकि गाँव के दीनों, दुखियों की परिचर्या

    में रहती थी, या जब अपने भारी मन को

    हल्का करने को प्रार्थना किया करती थी।

    और आज क्या वही नहीं तू, जो आता था

    चमक चीर घन अंधकार मेरी रातों का,

    औ' मेरे तकिए के ऊपर झुक जाता था?

    ठीक स्वप्न की मधुर मूर्ति फिर आगे आई।

    देवदूत-सा क्या तू मेरा संरक्षक है?

    या तू मुझको धोखा देने वाली छलना?

    मेरे भ्रम को संदेहो को दूर हटा दे,

    हो सकता है इसमें कोई सार नहीं है,

    यह केवल नादान हृदय का सन्निपात है,

    और भाग्य ने कुछ विपरीत विरच रक्खा है,

    लेकिन यदि ऐसा भी हो तो, इस क्षण से मैं

    अपने को, अपनी किस्मत को, तेरे हाथों

    सौंप रही हूँ, रोती हूँ तेरे आगे,

    विनती करती हूँ तू ही मेरी रक्षा कर।

    ज़रा ध्यान दे, यहाँ अकेली पड़ी हुई हूँ,

    कोई नहीं समझता मुझको, काम देता

    है दिमाग़ मेरा, कमज़ोरी, बेचैनी है।

    अगर खोलूँ मुँह खोई-खोई रहती हूँ।

    मुझको एक प्रतीक्षा तेरी, तेरी चितवन

    एक जगा देगी मेरी उन आशाओं को

    जो मेरे अंतर में सोई, मृतप्राय है,

    या तेरी भर्त्सना एक उस स्वप्न-जाल को

    खंड-खंड कर देगी जो मुझको घेरे है।

    मेरे प्रति ऐसा व्यवहार उचित ही होगा।

    और नहीं अब कुछ कहना है, जो लिख डाला

    उसको पढ़ते हुए मुझे ख़ुद डर लगता है,

    ग्लानि और लज्जा में मैं डूबी जाती हूँ,

    मुझे बचा सकती है तो बस तेरी करुणा,

    मुझे भरोसा उसका ही है, अरी लेखनी,

    लिख दे मेरा नाम अगर साहस रखती है,

    कुछ छिपाया जिससे उनसे कैसा डरना।

    स्रोत :
    • पुस्तक : चौंसठ रूसी कविताएँ (पृष्ठ 59)
    • रचनाकार : अलेक्सांद्र पूश्किन
    • प्रकाशन : राजपाल एंड संस
    • संस्करण : 1964
    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

    ‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।

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