आख़िर
कहाँ से आया ताला
क्यों आया ताला
वे सब बनाते हैं घर
कहते हैं हम जिन्हें
जानवर
कोई नहीं लगाता ताला
इतना सुंदर घर बनाने वाली बया
सिटकनी तक नहीं लगाती
अलगाव की कोख से निकला होगा
पहला ताला
जो दरवाज़ों पर नहीं
रिश्तों पर
लगा होगा
किसने लगाया होगा पहला ताला
इतना तो तय है
किसी बच्चे ने नहीं
किसी ग़रीब ने नहीं
किसी मज़दूर ने नहीं
किसी बेवक़ूफ़ ने भी नहीं
किसी समझदार ने
लगाया होगा पहला ताला
जिसे बहुत डराया होगा
उसकी संपत्ति ने
क्या समझदारी एक ताला है
या संपत्ति ही ताला है।
पहले संपत्ति आई
या ताला
प्रकृति से बड़ा ऐश्वर्यशाली
कौन है भला
कैसा लगे
जब एक दिन पेड़
अपने फलों पर लगा दें ताले
नदी बोले सावधान
तुमने खो दिया मेरा पानी पीने का हक़
किसने दी उस नल पर ताला लगाने की इजाज़त
जिसमें भरा है मेरा पानी
और तब क्या हो
जब बोले सूरज
आज तालाबंदी रहेगी धूप पर
अप्राकृतिक है ताला
वह घर पर हो
या ज़ुबान पर
अब इस उलटबाँसी का क्या करें
जितनी सभ्य होती जाती है दुनिया
बढ़ते जाते हैं ताले
क़िसिम-क़िसिम के ताले
तिजोरी के, दरवाज़े के, कम्प्यूटर के
रिश्तों के,
संबंधों के,
परिवारों के,
उसी अनुपात में
बढ़ते जाते हैं ताले तोड़ने वाले
क्याेकर लेंगे ये ताले?
ताले नहीं डालते तालाब
ताल मिलाते हैं जीव-जंतु
ताले बंद करते समय
बार-बार होता है
यह एहसास
दूसरे नहीं
हम ख़ुद बंद हो रहे होते हैं
तालों में।
- रचनाकार : प्रमोद कुमार तिवारी
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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