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काग़ज़ का सैनिक

kaghaz ka sainik

बुलाट शाल्वोविच ओकुदझावा

अन्य

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और अधिकबुलाट शाल्वोविच ओकुदझावा

    हमारे बीच एक सैनिक रहा करता था

    उससे ज़्यादा जाँबाज़ या बाँका कोई था

    मगर वह बच्चों का महज़ खिलौना था

    क्योंकि वह काग़ज़ का बना था

    वह सब कुछ बदल देना चाहता था

    देश को महान बनाना चाहता था

    डोरियों से लटका था

    क्योंकि वह काग़ज़ का बना था

    धुएँ और आग में मर भी सकता था

    वह हमारे लिए और रहता अडिग

    मगर आप हँस रहे थे उस पर

    क्योंकि वह काग़ज़ का बना था

    आपने अपने मसले के लिए उस पर भरोसा नहीं

    किया,

    और वह आपकी कृपा से बाहर हो गया

    पर क्यों, मैं पूछता हूँ—यह सब इसलिए क्योंकि

    वह बंदा काग़ज़ का बना था

    उसने चाहा

    एक ऐसा जुनून जिसका स्वाद वह ले सके

    और माँग की आपसे—अंगारे, मुझे अंगारे दो!

    यह भूलते हुए कि वह काग़ज़ का बना था।

    अंगारा? ठीक है, जाओ, रुकना मत

    उसकी वहशत कम होगी

    और बिलावजह मारा गया, आख़िरकार

    क्योंकि वह काग़ज़ का बना था।

    स्रोत :
    • पुस्तक : सदानीरा पत्रिका
    • संपादक : अविनाश मिश्र
    • रचनाकार : कवि के साथ अनुवादक रीनू तलवाड़ और प्रचण्ड प्रवीर

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