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स्वाभिनंदन

swabhinandan

अनुवाद : वै. वेंकटरमण राव

कुंदुर्ति आंजनेयलू

और अधिककुंदुर्ति आंजनेयलू

    मामूली मर्यादाओं का कर अतिक्रमण

    अभिनंदन कर लेता हूँ अपने आप का मैं!

    सामान्य का समीप बंधु

    संप्रदाय-सरोवर के बाँध को

    तोड़ता पानी का प्रवेश स्तर हूँ मैं

    प्रजातंत्र के ग़रीबनवाज़ों का आधा भार वहन करता,

    अनधिकार ओहदे के मंत्री-सा सलाह-गीत लिखता,

    कालगति में कष्टों के बीच से आगे बढ़ती प्रजा के लिए

    भूलोक-स्वर्ग द्वारों को पहले ही खोलता,

    खोटे सिक्कों को भिखारी के सामने बिखेरने वाले

    परम लोभी धार्मिक की भावनाओं का भंडा-फोड़ करता,

    बुरा-भला लोक को सुनाता,

    उफनते परिवर्तन के परदों को खोल कर

    हृदयाकाश में पहले ही अरुणोदय को पहचानने के लिए

    अभिनंदन कर लेता हूँ अपने-आप का मैं

    कुछ क्षणों का प्रकाश और कुछ क्षणों का अंधकार करती

    दो जिह्वाओं की नीति से अपने-आप में घूमती धरती के आसपास

    कुछ और उपग्रहों को फिरा कर

    उसे नाराज़ कर

    मन से नक्षत्रों के कांति-वलय में प्रवेश कर

    अनंत कोटि कांति वर्षों की आयु पा कर

    वहाँ के कल्पवृक्षों से फलित अमृत की ऊहाओं को तोड़ कर

    समय के साथ जीते, गहराई से भावित करते

    अमरता को चाहने वाले मनुष्य का

    मित्र बन जाने के कारण

    अभिनंदन कर लेता हूँ अपने-आप का मैं

    भोली-भाली जनता की

    प्रशंसा हो अथवा अभिशंसा, ख़ैर

    इतिहास चाहे मज़ाक उड़ा ले

    मुसकुराते उत्तर देकर

    ज्ञानी महामहिमों को विशेष अर्थ-स्फुरण से रिझाकर

    अज्ञानी अबोधों को वाच्यार्थ से ही फुसलाकर, सहलाकर

    साहित्य-सरस्वती-प्रतिमा की प्राण-प्रतिष्ठा कर

    अधर विकासों की हृदय वेदिकाओं पर नचाने के लिए

    अभिनंदन कर लेता हूँ अपने आप का मैं

    मान्य विश्वासों को वेग से कह देने का बल

    मान मेरे अस्तित्व का प्रतिफल,

    हर बात को नई बोल देने वाला स्वर

    कलम के लिए भाषायोषा वरदान भास्वर

    पूर्वापर का विचार छोड़

    ज़ोर-शोर से, तीनों लोक सुन सकें,

    पंडितों के दोष-प्रकरण को छोड़ सामान्य की भाषा में

    भगवान् को भाने वाले भावों को प्रतिपादित करते रहने के लिए

    अभिनंदन कर लेता हूँ अपने-आप का मैं।

    स्रोत :
    • पुस्तक : शब्द से शताब्दी तक (पृष्ठ 62)
    • संपादक : माधवराव
    • रचनाकार : कुंदुर्ति आंजनेयलू
    • प्रकाशन : आंध्र प्रदेश हिंदी अकादमी
    • संस्करण : 1985

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