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सूक्ष्म एकात्मकता

sookshm ekatmakta

वाज़दा ख़ान

वाज़दा ख़ान

सूक्ष्म एकात्मकता

वाज़दा ख़ान

और अधिकवाज़दा ख़ान

    सहस्रों नि:शब्द धड़कनों का

    रक्तशिराओं के समंदर में बहते,

    ख़ुद को कश्ती बना लेना,

    गहरी और गहरी होती

    भावशून्यता को

    इक अँधेरे सफ़र में क़ैद कर देना।

    देह को देह से गूँथकर

    इक अनकही गाथा फुसफुसाना,

    अंतराल की लंबाई को

    कम करते हुए, चेहरे को

    चेहरे से प्रदीप्त कर देना।

    समंदर की लहरों और

    उच्छवासों के उतार-चढ़ाव को

    हृदय में चमकते अनकहे

    पुलिंदों पर सबसे

    ऊपर धर देना,

    हया बनी परछाइयों को हथेलियों में थामकर

    सागर की सरहदों के संग चुपचाप चलते जाना।

    संपूर्ण वजूद के उतार-चढ़ाव में

    आवेगों को

    उलझा लेना,

    विशुद्ध गहन चेतन स्तर पर रचती है तब

    आह्लादित उष्णता से भरी सूक्ष्म एकात्मकता।

    स्रोत :
    • रचनाकार : वाज़दा ख़ान
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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