सोनागाछी में योगमाया
sonagachhi mein yogmaya
शक्ति चट्टोपाध्याय, मलय रॉयचौधरी और ऐलन गिंज़्बर्ग को याद करते हुए
वह अपनी साड़ी की लंबी लाल पाढ़ पर रोज़ थोड़ा लहू पोंछती थी,
उसके गीले बाल रोज़ अलग चेहरे पखारते थे और उसके पलंग पर नक़्क़ाशियाँ बनीं थीं
और उनमें कहीं कहीं मोम फँसा हुआ। एक आईना था जिसमें पलंग दिखता था-एकटक सब।
और सब इतना घिसापिटा कि किसी छोटी कहानी में से निकलकर
अपने समय का ख़राब अनुवाद बनता हुआ।
मैं जान गया इतने दिन में उसकी पीठ के सब तिल
उसकी जाँघों पर सिगरेट के जले सब निशान
मैंने बार बार बुहारा उसकी देह को, खोजता हुआ उसकी
गंध जाने कितने देश भटका, कितने दरवाज़े खोले
उसका एक दरवाज़ा खोजते हुए अपनी आत्मा के अंदर…
वह बार-बार मुझसे पूछती, तुम सोनागाछी में क्या कर रहे हो
तुम्हारे बाल घुँघराले हैं सागर में उठने वाली घिरनियों की तरह,
तुम रोज़ मुझसे प्रेम करते हो, तुम रोज़ मुझे छूते हो कई कई बार
तुम चीख़ते हुए जो ढह जाते हो मेरे भीतर, मेरे लिए तो नहीं—
तुम किससे करते हो प्रेम जब मेरे साथ सोते हो?
छाया की तरह है प्रेम, किसी दूसरे की देह से अपनी कामना।
जो अमूर्त होना चाहिए उसका एक अभिधात्मक पराभव।
- रचनाकार : अंचित
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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