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नया एकांत

naya ekant

सविता सिंह

सविता सिंह

नया एकांत

सविता सिंह

आख़िरकार अपनी भाषा में हूँ सुकून से

मुझे खोजने सकते हैं मेरे प्रेमी

मैं मिलूँगी भी अब शायद उन्हें सजी-धजी

उनका स्वागत करती

अब मुझमें कोई संशय नहीं

भीरुता पहले वाली

ज़रा भी रहस्यमय नहीं रहूँगी अब मैं

जैसे मैं थी जब नहीं समझती थी भाषा के तिलिस्म को

उसके विस्तार को

इस समय कितनी सहज हूँ मैं

साधारण कितनी साधारण

सचमुच जैसी मैं हूँ

अपनी कविता में जीवन की समझ की तरह

व्यथित-आनंदित एक राग की तरह ख़ुद को गाती

बेफ़िक्र जैसे कोई नदी

चुपचाप बहती किसी जंगल में

अपनी भाषा में फिर भी कितनी सबके साथ हूँ

बिना किसी द्वेष और स्पर्धा के

जो झिझक है थोड़ी-बहुत दूसरों को लेकर

वह कविता की ही है

वह ख़ुद उसे झाड़ लेगी जब वह नया समाज बना लेगी

इसका यक़ीन है भाषा को ही

मैं हूँ सुकून से जैसी पहले कभी थी

आश्वस्त भी कि प्रेम पहचान लेगा इस नए एकांत को

स्रोत :
  • पुस्तक : स्वप्न समय (पृष्ठ 22)
  • रचनाकार : सविता सिंह
  • प्रकाशन : राधाकृष्ण प्रकाशन
  • संस्करण : 2013

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