कवि कोकिल केर कला-भूमि
स्पंदनमे रचल जन-जन केर
निहुरि-निहुरिकेँ बाट तकै छै
परदेसिया विकास केर
सिसकि-सिसकिकेँ कानै छै
हुकरि-हुकुरि चलै छै
यांत्रिक युगमे बैलगाड़ी सन
मिथिला ओतबे टा नहि
जकर राजसत्ता आ शस्य संपदाक गुणगान
युगचक्र जकाँ भेल
ओतबे टा नहि
जकरा महाकविक गीतक स्वर भेटल हो
मनबोध आ चन्दा झाक कविता
दरभंगा राजक किला
नरगौना आ बेला पैलेस
दरभंगे टा नहि, मधुबनिये टा नहि
सहरसे-पूर्णिया टा नहि
स्वतंत्रताक उपरांत अविकासक सभटा कर्मस्थली
अभिशप्त संपूर्ण भारतवर्ष थीक मिथिला
जतऽ जन्म लेनाय किताबी गौरवपूर्ण
अभिलाषा थीक
कोनो पुरना पोथीक पीयर सड़लाहा पन्ना
कोनो युद्धमे पराजित राज्य थिक मिथिला
कोनो उजड़ल साम्राज्य थिक मिथिला
कोनो मसोमातक पुरना सिनुरक
ललका टहटहीक स्मरण थिक मिथिला
कोनो बलत्कृत स्त्रीक
फूटल चूड़ीक नाप थिक मिथिला
युद्धमे मारल
कोनो फौजीबूटक निशान थिक मिथिला
भूकम्प केर प्रकम्प थिक मिथिला
गिरहथक कोदारि थिक मिथिला
ओतबे टा नहि कि अहाँ हमरा बुझैत रहू
मिठबोलिया, पेंचियल, टेढ़
हमरो शब्दकोशमे
कतेको, हजार गारि हैत
जकर संकलन अखन धरि नहि भऽ सकलै
हमरो हृदयमे दौड़ रहल अछि
जुआन रक्तक थरथराहटि
लोकतंत्र केर कोनो आख्यान लिखैसँ पहिने
हारल सिपाहीक बन्नूकक गोली टेबैसँ पहिने
गामक-गामसँ
पड़ा गेल युवराज केर आक्रोश
भड़कबे टा करतै,
कथू ने कथूपर
टोल-टोलसँ सभ छौंड़ी-छौंड़ाक
समवेत स्वरमे तानल मुट्ठीक संगहि
बहुत जोरसँ वज्रनाद
हेबेटा करतै
कोनो ने कोनो दिन
कोनो नेनाक जन्मक बाद
डंगाबैत रहतै दादी, छिपिया
कोनो स्त्रीक मधुश्रावणी महापर्व
ज्ञान-दर्शन केर कोनो सूत्र-वाक्य
कोनो सोहर, कोनो बटगमनी
चलिते रहतै अनवरत
कोनो ने कोनो कारण
कोनो समय एबे करतै
जखन गाओल जेतैक
आबामे तापल घैलापर
करताल आ ढोलक झालि संग
अन्हारकेँ फाड़ि दय वला
इजोतक प्रभाती गीत
कोनो समय जरूरे आओत
जखन अपन अनहारकेँ
चीरिकेँ
फाड़िकेँ
उपजबे करत
इजोत आ आक्रोश
एक झुंडमे नचबे टा करत
सब छौड़ी-छौंड़ा
माउगी मोनसा
एक्के संग
तीन ताल सोलह मात्रा
आ बनबे टा करत
ओहि सामूहिक नृत्य केर विराट चित्र
मधुबनी शैली लिखियामे
- पुस्तक : एतबे टा नहि (पृष्ठ 25)
- रचनाकार : अरुणाभ सौरभ
- प्रकाशन : नवारम्भ
- संस्करण : 2017
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