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स्मृतियाँ

smritiyan

ललन चतुर्वेदी

ललन चतुर्वेदी

स्मृतियाँ

ललन चतुर्वेदी

और अधिकललन चतुर्वेदी

    दुनिया में ऐसी कोई चीज़ नहीं जिसकी आयु नहीं हो

    मनुष्य की आयु से निर्धारित होती है

    बहुत सारी चीज़ों की आयु

    मनुष्य की मृत्यु केवल जीवन से मुक्ति है,

    स्मृतियों से नहीं

    स्मृतियाँ ही हैं जो आयु का अतिक्रमण करती हैं

    सच यह है कि हर पल किसी को याद नहीं रखा जा सकता है

    इसी तरह किसी को बिल्कुल भुलाया भी नहीं जा सकता

    स्मृतियों की कुछ छवियाँ होती हैं

    जो नियमित अंतराल पर प्रकट और लुप्त होती रहती हैं

    इसे याद आना और भूल जाना कहकर

    हम साधारणीकृत कर देते हैं

    तुमने मुझे बिल्कुल भुला दिया—

    यह सरासर ग़लत आरोप है

    भुलाना किसी की यादों को

    भुनाने के अतिरिक्त कुछ नहीं है

    ध्यान रहे कि स्मृतियों से किसी की वफ़ादारी

    तय नहीं की जा सकती

    स्मृतियों का चित्र कलेजे पर चिपकाए

    किसी वीरान शहर में

    अपने लुप्त प्रेमी को ढूँढ़ना बहुत मुश्किल है

    यह स्मृतियों की सीमा हो सकती है

    मगर ग़ज़ब तो यह है कि

    अंतिम समय में स्मृतियाँ बिल्कुल साफ़ हो जाती हैं

    और साथ चलने को प्रस्तुत हो जाती हैं

    आँखें डबडबा जाती हैं उनके आते ही

    विदा होते समय हमें कुछ भी ले जाने की इजाज़त नहीं होती

    सफ़र के अंतिम पड़ाव पर हम इतने थक चुके होते हैं

    कि कुछ भी नहीं ढो सकते स्मृतियों के सिवा

    शायद अगले जन्म में मिलने की आकांक्षा-पूर्ति के लिए

    स्मृतियाँ ही काम आती हैं

    यही एक थाती है

    यही एक सुरक्षित संचित पूँजी है

    जो आगे भी साथ निभाती हैं।

    स्रोत :
    • रचनाकार : ललन चतुर्वेदी
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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