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औरतों की हँसी

aurton ki hansi

अरुण देव

अरुण देव

औरतों की हँसी

अरुण देव

औरतें अगर हँस रही हैं

तो कोई हँसने की बात होगी

उनके आँसुओं की प्यासी यह सभ्यता

मर्यादित मुस्कान की अभ्यासी यह संस्कृति

उनकी समवेत हँसी से थर-थरा रही है

डर रही है उनके खुले ठहाकों से

औरतों को अगर रोका जाए

और बात-बेबात टोका जाए

तो वे हँसेगी

वे देखती हैं एक नन्हे शिशु का धीरे-धीरे पुरुष में बदल जाना

उनसे कुछ भी छिपा नहीं हैं

आदम की दुनिया को जिसने ख़ुद सँवारा हो

और जो अब भी रच रही है यह दुनिया

वे इस दुनिया से अपने निर्वासन की इस विडंबना पर हँस तो सकती हैं

वे हँस रही हैं

कि उनकी औलादें नाकाम रहीं उन्हें समझने में

वे हँस रही हैं कि उनका अभी भी कोई पुरुष-मित्र नहीं

वे हँस रही हैं

कि उनकी ख़ुदमुख़्तारी से डरता आदम

उनकी हँसी से भी डरता है।

स्रोत :
  • रचनाकार : अरुण देव
  • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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