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बहन का प्रेमी : पाँच कविताएँ

bahan ka premi ha panch kawitayen

पवन करण

पवन करण

बहन का प्रेमी : पाँच कविताएँ

पवन करण

 

एक

एक तय जगह पर मैं उसे 
अक्सर खड़े हुए देखता हूँ 

घर की बालकनी से जब मेरी निगाह 
उसकी निगाह से टकराती है 
वह अपनी नज़रें 
दूसरी तरफ़ घुमा लेता है

वह मुझे देखकर वहाँ से हट जाए 
यह सोचकर मैं उसे 
टकटकी लगाए 
देर तक रहता हूँ घूरता

लेकिन मेरी इस ज़िद का 
उस पर कोई असर नहीं होता 
उसकी निगाह बार-बार 
मेरे घर पर जा टिकती है

मेरे तरकश के तीरों को 
बख़ूबी झेलते हुए आगे बढ़े 
यह उसका रोज़ का सिलसिला है 

मैं छुपकर उसे कई दफ़े वहाँ से 
अपनी बहन की तरफ़ 
उँगलियों की भाषा में 
शब्द उछालते हुए देखता हूँ 
वह वहाँ खड़े होकर रोज़ाना 
मेरी बहन के घर से बाहर झाँकने 
और उससे आँखें मिलने का 
करता है इंतज़ार

मज़ा तो तब आता है 
जब मेरी बहन उससे रूठ जाती है 
और वह दिन-दिन भर 
उसके दिखाई देने की प्रतीक्षा में 
वहाँ खड़े-खड़े गुज़ार देता है

तब दिन-दिन भर मेरा घर 
रात के आकाश की तरह 
उसकी आँखों में अटका रहता है

दो

वह जल्दी-जल्दी एक सँकरी 
गली में घुसता है 
जो बहन के कॉलेज के 
रास्ते में खुलती है जाकर 

गली के मुहाने पर उसे 
खड़े हुए देखकर घर से 
कॉलेज के लिए निकली बहन भी 
छोड़कर अपना रास्ता
गली में घुस जाती है 

फिर वह पूरी गली मज़े ले-लेकर 
मेरी बहन और उसके प्रेमी को 
आपस में शिकवे-शिकायतें करते 
रूठते-मनाते, एक-दूसरे को 
चिट्ठियाँ लेते-देते देखती है 

गली का एक-एक घर उन्हें 
लैला-मजनूँ की तर्ज़ पर पहचानता है 

और गली ही नहीं 
घर से कॉलेज के लिए निकली सड़क भी 
मेरी बहन को आते देखकर 
फुसफुसाने लगती है 

देख वह गली के मुहाने पर 
खड़ा हो गया आकर 
और अब देखना वह आएगी 
और उसे गली पर खड़ा देख 
सीधे गली में घुस जाएगी 

कई दफ़े तो वह यह कहते हुए 
यार हम भी इतने बुरे नहीं 
मेरी बहन को छेड़ भी देती है 

लेकिन एक पकी हुई प्रेमिका की तरह 
मेरी बहन पर 
किसी की किसी बात का 
कोई ख़ास असर नहीं होता 

तीन

मोहल्ले भर को यह बात पता है 
उसके पास 
मेरी बहन का फ़ोटो है 

कॉलेज के परिचय-पत्र से 
खींचकर निकाला गया 
मासूम चेहरे वाला 
एक श्वेत-श्याम फ़ोटो 

जिसे वह अपने मित्रों को 
अपनी जेब से निकालकर 
खेल मे जीती हुई किसी 
ट्रॉफ़ी की तरह दिखाता है 

किसी खिलाड़ी की तरह जब वह 
सबके बीच चूमता है उसे 
उस समय उसके चेहरे की अकड़
देखते ही बनती है 

और अपने मित्रों के बीच भी 
वह अकेला ही है जिसके पास 
अपनी प्रेमिका का फ़ोटो है 

उसके मित्र उसे कई दफ़े 
तंग करने की नीयत से 
उससे उस फ़ोटो को
छीनने की करते हैं कोशिश 
लेकिन वह हर बार उसे 
मित्रों के हाथों में जाने से बचा लेता है 
भले ही इसके बदले में उसे 
अपने मित्रों को 
पड़ता हो कुछ खिलाना-पिलाना

मैं उससे भिड़ना चाहूँ 
तो मेरी बहन के उससे 
फँसे होने का इससे बड़ा सबूत 
मेरे लिए और क्या हो सकता है 
कि उसकी जेब में हमेशा 
मेरी बहन का फ़ोटो रहता है 

चार

अपने हर पत्र में बहन 
उससे अनुरोध करती है 
पढ़ने के बाद मेरा पत्र 
फाड़कर फेंक देना 

वह भी अपने हर ख़त में 
उसे भरोसा दिलाता है 
पढ़ने के बाद मैंने 
तुम्हारे पत्र को 
फाड़कर फेंक दिया 

लेकिन न तो बहन ही 
उसकी इस बात पर 
भरोसा करती है और न ही वह 
उसके पत्रों को 
फेंकता है फाड़कर 

सिर्फ़ उसके लिए धरती पर 
उतरी होने का भरोसा दिलाती 
बहन और बस बहन के लिए 
जीने का वादा करते 
उसके प्रेमी को 
पत्रों के मामले में 
एक-दूसरे पर क़तई विश्वास नहीं
बहन के मन में यह आशंका 
हमेशा रेंगती रहती है कहीं वह 
उसके पत्रों को 
अख़बार की तरह सबकी 
आँखों के सामने न बिछा दे 

और बहन के प्रेमी को भी 
यह डर डसता ही रहता है 
घर के कहने पर अपने 
कहीं किसी रोज़ वह 
भूलकर प्रेम-व्रेम 
उस पर ही पलट जाए तब 

तब ये पत्र ही होंगे 
जो उस वक़्त उसे बचाने 
ढाल की तरह आएँगे उसके काम 

पाँच

बहन की किताबों-कॉपियों में 
कई दफ़े रँगे हाथ 
पकड़ा गया प्रेमी का नाम 

प्रेमी और उसकी मुलाक़ातें
शिकायतों की शक्ल में 
घर के कानों तक पहुँचीं 

घर में पिता के हाथों 
बुरी तरह पिटी बहन
और मेरे हाथों सड़क पर 
खुलेआम पिटा प्रेमी

दस-दस रोज़ बहन को 
घर ने ख़ुद से बाहर 
नहीं निकलने दिया 
दो-दो तीन-तीन रोज़ 
बहन के हाथों ने 
खाना छुआ तक नहीं 

कई दफ़े नौबत बहन की 
पढ़ाई-लिखाई 
रोक देने तक आ पहुँची 

मोहल्ला छोड़कर चले जाने पर भी 
घर ने गंभीरता से किया विचार 

बहन और उसके प्रेमी के बीच 
छाई हुई चुप्पी देखकर 
कई दफ़े लगा जैसे 
उनके बीच नहीं रहा कुछ 

लेकिन वह लगातार प्रेमी की सोच में 
अनार की तरह फूटती रही 
और वह भी निरंतर 
उसके भीतर सुलगता रहा 

धीरे-धीरे प्रेम करती बहन 
और उसका प्रेमी 
घर और मेरी दिनचर्या में 
होता गया शामिल 

और मेरे भीतर का भाई गलकर
घर के फ़र्श पर टपकता रहा

स्रोत :
  • पुस्तक : स्त्री मेरे भीतर (पृष्ठ 26)
  • रचनाकार : पवन करण
  • प्रकाशन : राजकमल प्रकाशन
  • संस्करण : 2006

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