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घोर पाप है

ghor paap hai

शशि शेखर

अन्य

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शशि शेखर

घोर पाप है

शशि शेखर

और अधिकशशि शेखर

    गाय-भैंस की तरह

    जुते हुए वे लोग

    कराहते हैं—

    दर्द से, पीड़ा से।

    फट पड़ने को होता है

    जब धीरज,

    टूट पड़ने को होती हैं

    जब हड्डियाँ

    तो काली चमड़ीवाले

    उन बदबूदार

    इंसानों पर

    पड़ते हैं कोड़े—

    भूख के

    परिवार के

    और सबसे ऊपर

    उस देह के

    जो अभी जीना चाहती है।

    कभी-कभी भगवान

    याद आता है

    या हरदम ही

    तुम भले कहो वह अफ़ीम है

    छलना है,

    भ्रम है,

    पर वही तो जीवट है

    मरने से बेहतर

    हारने से बेहतर

    थकने से पहले

    गिर पड़ने से पहले

    कोई तो है

    जो बीच में

    बचा लेता है।

    मिट्टी के जन्मे

    ख़ुद मिट्टी खाकर नहीं

    जी सकते

    इसलिए खा लेते हैं

    ये अफ़ीम

    कि कुछ दिन

    और जी लेना है

    कि मरना तो

    सब कहते हैं—

    'घोर पाप है।'

    स्रोत :
    • रचनाकार : शशि शेखर
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए अदिति शर्मा द्वारा चयनित

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