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सिंहों की छाया

sinhon ki chhaya

शिवमंगल सिद्धांतकर

शिवमंगल सिद्धांतकर

सिंहों की छाया

शिवमंगल सिद्धांतकर

और अधिकशिवमंगल सिद्धांतकर

    सरितान्वित क्षितिज पर ख़ून के धब्बे छोड़

    आया हूँ

    सीने के अंदर जो जम गए हैं

    काली भेड़ों ने डरकर

    हमें यह सज़ा सुनाई है

    भोले आदमी की भेड़ों ने जिस तरह हमें

    बेइज़्ज़त किया

    सिंहों की छाया से सुबह को जो सूँघते हैं

    वे भी तो क़त्ल से कतराते हैं

    फिर हम किस तरह समय को नापते हैं

    डग पर डग धरते हुए

    स्रोत :
    • पुस्तक : काल नदी (पृष्ठ 13)
    • रचनाकार : शिवमंगल सिद्धांतकर
    • प्रकाशन : राग विराग प्रकाशन
    • संस्करण : 2003

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