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शम्स के इंतज़ार में

shams ke intzaar mein

पल्लवी विनोद

पल्लवी विनोद

शम्स के इंतज़ार में

पल्लवी विनोद

और अधिकपल्लवी विनोद

    बर्फ़ गिरने का मौसम है

    हवाओं की ठंडक जिस्म को छेद रही है

    शीत से भीगी सड़कें

    अलाव की आस में दहक रही हैं।

    कि पेड़ों को कंबल नहीं ओढ़ाए जाते

    इसका मतलब ये तो नहीं,

    वो ठिठुरते नहीं हैं

    वो पूरी रात काटते हैं,

    शम्स के इंतज़ार में…

    मैं भी लंबी प्रतीक्षा में हूँ

    नीले वसन-सा अंबर रंग बदलता रहता है

    उसका काला रंग और

    उस पर टंके चमकीले सितारे

    मेरे साथ पूरी रात जागते हैं

    सड़कों पर जलते हैलोजन की तरह

    हीटर का ताप भी नक़ली है

    मैं भी सड़कों और पेड़ों की तरह

    शम्स के इंतज़ार में हूँ

    वो आएगा और मैं

    उसकी बाहों में सिमटकर फूल बन जाऊँगी

    पंखुड़ी बन झर जाऊँगी उसके ही पैरों पर

    मेरी ठंडी होती देह उसे देख मुस्कुराएगी

    रूह उस क्षण तक इस देह का साथ देगी

    जब उसका ताप अधरों से होकर

    मेरी हर घूँट में भर जाएगा

    तब तक अपनी आँखों को मूँद

    मैं जीती रहूँगी

    अपने शम्स के इंतज़ार में…

    स्रोत :
    • रचनाकार : पल्लवी विनोद
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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