शहर
shahr
मैं अपने शहर वापस चला जाऊँगा
नदी किनारे खड़ा शहर मेरा
उसने अपने तन-बदन का
अपने हाथों अग्नि-शृंगार किया है
नदी में छलाँग लगाने की सोचता है
मुझे अपने शहर को बीच छलाँग के लपक लेना है
उससे कहना है
अभी बुझ जाने का समय नहीं है
मैं अपने शहर
वापस चला जाऊँगा।
- पुस्तक : जंगल में झील जागती (पृष्ठ 113)
- संपादक : गगन गिल
- रचनाकार : हरिभजन सिंह
- प्रकाशन : नेशनल पब्लिशिंग हाउस
- संस्करण : 1989
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