शब्दों की पवित्रता के बारे में
shabdon ki pawitarta ke bare mein
चंद्रकांत देवताले
Chandrakant Devtale
शब्दों की पवित्रता के बारे में
shabdon ki pawitarta ke bare mein
Chandrakant Devtale
चंद्रकांत देवताले
और अधिकचंद्रकांत देवताले
रोटी सेंकती पत्नी से हँसकर कहा मैंने
अगला फुलका बिल्कुल चंद्रमा की तरह बेदाग़ हो तो जानूँ
उसने याद दिलाया बेदाग़ नहीं होता कभी चंद्रमा
तो शब्दों की पवित्रता के बारे में सोचने लगा मैं
क्या शब्द रह सकते हैं प्रसन्न या उदास केवल अपने से
वह बोली चकोटी पर पड़ी कच्ची रोटी को दिखाते
यह है चंद्रमा जैसी दे दूँ इसे क्या बिना ही आँच दिखाए
अवकाश में रहते हैं शब्द शब्दकोश में टँगे नंगे अस्थिपंजर
शायद यही है पवित्रता शब्दों की
अपने अनुभव से हम नष्ट करते हैं कौमार्य शब्दों का
तब वे दहकते हैं और साबित होते हैं प्यार और आक्रमण करने लायक़
मैंने कहा सेंक दो रोटी तुम बढ़िया कड़क चुंदड़ी वाली
नहीं चाहिए मुझको चंद्रमा जैसी।
- पुस्तक : जहाँ थोड़ा-सा सूर्योदय होगा (पृष्ठ 106)
- रचनाकार : चंद्रकांत देवताले
- प्रकाशन : संवाद प्रकाशन
- संस्करण : 2008
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