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शब्द की सीमा

shabd ki sima

अनुवाद : इबोहल सिंह काड़्जम

एलांगबम नीलकांत सिंह

खेलता आया हूँ जीवन भर

शब्दों की बगिया में

शब्द के बाद शब्द के तीर

चलाता आया हूँ इतने वर्षों से कल्पना के तरकश से।

लेकिन समझ गया हूँ अब

होती है सीमा शब्द की, विचार की

छिपाया जाता है, नहीं किया जा सकता व्यक्त

ठुठल भाले की भाँति।

इसलिए मानव, गतिहीन हो जाने पर शब्द के

साथ बैठते हैं चुपचाप

मिलाते हैं आँखें

उसी सच्चाई के लिए जो नहीं की जा सकी व्यक्त

सोचकर, मिल पाएगी एक झलक।

कर रहे हैं ध्यान योगी-ऋषिगण

जारी है मौन-तपस्या

निःस्तब्धता की

शांति की।

स्रोत :
  • पुस्तक : तीर्थ-यात्रा (पृष्ठ 53)
  • रचनाकार : एलाड़्बम नीलकांत सिंह
  • प्रकाशन : हिंदी बुक सेंटर
  • संस्करण : 1996

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