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कच्चे-पक्के रंग

kachche pakke rang

दर्शन बुट्टर

दर्शन बुट्टर

कच्चे-पक्के रंग

दर्शन बुट्टर
जिज्ञासा

कभी-कभी मैं अकेली होकर 
गुलाबी संवेदना की मुंतज़िर होती हूँ 
कभी तितली होकर 
पंखों में सँभालती हूँ तुम्हारे रंगों को

पर अब गुरुदेव! 
सरसों फूले स्वप्नों के खेत में 
बारूद झोंक गया है मौसम 
और छोड़ गया है 
सुरमई आँखों के चौफेरे स्याह हाशिए

हे गुरुदेव! 
बख़्शों मेरे चेहरे के पीलेपन को 
गाजरी रंग 
सौंप दे साँसों की गंध को 
सौंफ़िया महक

रख दो ख़ुश्क अधरों पर 
प्याज़ी मुस्कान 
अर्पित करो काली रातों को
मोर-पंखी सपने

भर दो आँखों की स्याही में 
सुर्ख़ आभा 
उगा दो उदास तकनियों में 
पीपल की कोपलों-सी तस्वीरें

खोज दो रूह के बोलों के लिए 
किरमची एहसास 
उकेर दो मटमैली स्लेट पर 
गुँथी इबारत

या फिर 
पानी में बहा दो सारे रंग 
और रचा लो मुझे 
अपनी फ़िज़ा के कालजयी रंग में...


गुरुदेव

दूर हटा 
आरज़ी रंगों का मोह 
सँभाल ले वह किरण 
जिसमें से सभी रंग फूटते हैं

रंग जो 
झगड़ते...लड़ते 
रूप बदलते...अस्तित्व गँवाते 
साँसों से नहीं निभते

रंग जो 
बरसात में बह जाते 
हाथ लगाते झड़ जाते 
रूह में नहीं उतरते

रंगों की नहीं 
महक की मुंतज़िर हो 
और महक़ का 
कोई रंग नहीं होता

यदि कहीं स्वप्नों में 
आरज़ी रंगों की शतरंज बिछे 
तो तू उलट देना बिसात

यदि किसी सफ़र में 
कोई छलिया रंग भरमाए 
तो तू स्थिर रहना

घड़ी पल रुकना पड़े 
तो चीर कर देखना सुर्ख़ किरन 
सतरंगे अनार 
फूट पड़ेंगे तेरी रूह में से

दूर हटा आरज़ी रंगों का मोह 
सँभाल ले वह किरण 
जिसमें से सारे ही रंग फूटते...

स्रोत :
  • पुस्तक : महाकंपन (पृष्ठ 36)
  • रचनाकार : दर्शन बुट्टर
  • प्रकाशन : साहित्य अकादेमी
  • संस्करण : 2016
हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

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‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।

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