विज्ञान पढ़ते-पढ़ते
न्यूटन का सेब गिरते देख
मुझे पहला विचार उसे खाने का आया था।
समूह जीवन का पाठ सीखने जाते समय
हरिजन आश्रम रोड़ पर काँच के आलीशान मकानों को देखकर
मुझे पहला विचार
उन पर पत्थर मारने का आया था।
रिसेस में लगती प्यास को दबाते-दबाते
सीवान पर प्याऊ के मटकों को देखकर
मुझे पहला विचार
कुत्ते की तरह एक पैर ऊँचा करके
उनमें मूतने का आया था।
सियार घूमते-घूमते शहर में जा पहुँचा
अचानक ही रंगरेज़ के हौज में गिर गया
रंगीन होने से ख़ुश-खुश हो गया
और जंगल में जाकर राजा की तरह रौब करने लगा
पकड़े जाने पर सज़ा मिली—
—इस विषय के
एक से अधिक अर्थ निकलते हैं
ऐसी कहानी लिखने के बजाए
मुझे आख़िरी विचार अनपढ़ रहने का आया था।
पढ़-लिखकर अपमान के प्रति चेतनायुक्त होना
और निष्क्रियता को पोषित करना—इसके बजाए
अनपढ़ रहता तो अन्याई के सिर पर प्रहार तो करता
या दारू पीकर अपमान का घूँट तो निगल जाता!
- पुस्तक : गुजराती दलित कविता (पृष्ठ 106)
- संपादक : अनुवाद एवं संपादन : मालिनी गौतम
- रचनाकार : नीरव पटेल
- प्रकाशन : साहित्य अकादेमी
- संस्करण : 2022
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