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स्कूल से भागने के अनेक कारण हैं

school se bhagne ke anek karan hain

व्योमेश शुक्ल

व्योमेश शुक्ल

स्कूल से भागने के अनेक कारण हैं

व्योमेश शुक्ल

और अधिकव्योमेश शुक्ल

     

    जैसे इंटरवल के बाद एक मैच खेलने जाना या कहीं वीडियो गेम पर हाथ आज़माना 
    मैच खेलने के अव्याख्येय रोमांच के उलट महाबकवास अनुभूति है बायलॉजी की कक्षा में केंचुए का चित्र बनाना 
    इसलिए भी भागना 
    जब मनाही हो 
    अध्यापक निगरानी कर रहे हों 
    आप बतौर भगोड़े प्रसिद्ध हो चुके हों 
    तब फिर से भागने के लिए जो संकल्प आप हासिल करते हैं और बार-बार भागते हुए जिस आज़ादी के आप अभ्यस्त होते हैं, 
    पाया गया है कि उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा परिषद् के इंटरमीडिएट के पाठ्यक्रम के बरअक्स वह कहीं ज़्यादा रोशन है 

    भागने के नुक़सान उठाते हुए आप अधिक मनुष्य बनते हैं 
    घरेलू परीक्षाओं प्रैक्टिकल्स और कक्षा में आपकी सीट 
    अधिकाधिक पीछे होती जाती है और कथित प्रतिभाशालियों की चमक 
    आपको हताश और प्रतिबद्ध भगोड़ा बनाती है 
    लेकिन कक्षा ख़त्म होने के बाद अध्यापक के पीछे भक्तिपूर्वक चलते हुए 
    कुछ सुविधाजनक सवाल पूछने जैसी अनेक दूसरी चापलूस हरकतों से आप अनायास बचते जाते हैं 

    ठीक है कि कुछ बेधक सवाल इस बीच आपको लगातार आहत करते गए जो 
    घर और स्कूल दोनों जगहों से उठे थे लेकिन 
    बोर्ड परिक्षाओं के दिन भी आते हैं और 
    वहाँ आपके साथ अलग से अन्याय नहीं होता 

    अपनी आवारगी और चंचलता से संतुष्ट एक प्रसन्न बेचैनी में कुछ पढ़ते हुए 
    एक दिन आप पाते हैं कि सिर्फ़ हिम्मत से काम लेने की अलबेली आदत ने 
    आपको कुछ प्रमेयों रासायनिक समीकरणों बीजगणितीय सूत्रों कुछ 
    अँग्रेज़ी संस्कृत हिंदी कविताओं का ख़ास विशेषज्ञ बना दिया है 
    एक बौद्धिक मुश्किल में स्मृति साथ दे रही है आपकी 
    हैंडराइटिंग में ईमान झलमलाता है 
    आप क्षमताओं का स्वस्थ इस्तेमाल करते हैं 
    दयनीय महत्त्वाकांक्षाओं की काटपीट उत्तरपुस्तिका में नहीं आपकी 
    फिर पास तो लगभग सब हो जाते हैं लेकिन इस तरह भागते हुए पास होने में 
    विजय है और जितने नंबर मिले उन्हीं से संतुष्ट होने का अद्वितीय एहसास 

     

    महान फ़िल्मकार अकीरा कुरोसावा के पहले स्कूली अनुभव और भगोड़े हमसफ़र हिमांशु पांडेय के लिए, सादर

    स्रोत :
    • पुस्तक : फिर भी कुछ लोग (पृष्ठ 17)
    • रचनाकार : व्योमेश शुक्ल
    • प्रकाशन : राजकमल प्रकाशन
    • संस्करण : 2009

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