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सपनों का शहर

sapnon ka shahr

अनुवाद : सत्यभामा राज़दान

मखनलाल बेकस

मखनलाल बेकस

सपनों का शहर

मखनलाल बेकस

और अधिकमखनलाल बेकस

    दूर इस निर्जन मोड़ पर

    दृष्टि जाती चारों ओर

    अभी इस ओर दूल्हा गया

    उस ओर क़ब्रिस्तान में मृतक पहुँचा

    ज़िंदगी है बेभरोसा, निरुपाय, असहाय, अविश्वासी

    और मौत है सपनों का शहर, गहराई 'वुल्लर' की, ठहराव सागर का

    आषाढ़ की तपती गर्मी में

    पक्की सड़कों पर

    पिघलती है काया जैसे

    हाय! मेरी पसलियों में चुभ गए हैं पथ के कंकर

    भर गया है ज्योतिर्मान आँखों में पीलिया रंग

    चुभ रहे हैं पुतलियों में रेत के कण

    रात जैसे उजाड़ शहरों में

    हवा साँय-साँय बोले

    चीं-ची करने लगे चमगादड़

    उल्लू करने लगे हूँ-हूँ

    कुंडली मार कर बैठी है मानो सर्पिणी कोई इस सड़क पर

    बुझी आँखों में बादलों-सा तैर रहा है धुआँ

    हे ईश्वर खोल दो अब इस ओर खिड़की स्वर्ग की

    भेज दो हमारी इन आँखों के लिए ज्योतिपुंज

    घुप अँधेरे में घिरा हर इंसान हर अस्तित्व है

    हैं क़ैद हमारे अस्तित्व में हज़ारों सूर्य

    होता है मिश्रण कितने ही दर्शनों का यहाँ

    (सोचकर यह) छूटी जाती है नमाज़

    जी लिया बहुत थक गया हूँ अब मैं

    सूख गया गला पिपासा से

    हाय लोप हो जाती गंगा भी

    इन पाषाण सड़कों पर

    लोहारी परिवेश में

    कहाँ से जन्मेगी शबनमी ग़ज़ल

    विचारने का अवकाश नहीं

    है विचारना निषिद्ध

    हैं हज़ारों सूर्य क़ैद हमारे अस्तित्व में

    देख! उस मरघट में चिता से ज्वाला उठी

    धधक उठी ताम्बई काया

    चौंधिया गई उजाड़ अँधेरी रातें

    दूर इस निर्जन मोड़ से

    नज़र जाती चारों ओर

    ज़िंदगी है बेभरोसा, निरुपाय, असहाय, अविश्वासी

    और मौत है सपनों का शहर, गहराई 'वुल्लर' की, ठहराव सागर का।

    स्रोत :
    • पुस्तक : उजला राजमार्ग (पृष्ठ 144)
    • संपादक : रतनलाल शांत
    • रचनाकार : मखनलाल बेकस
    • प्रकाशन : साहित्य अकादेमी
    • संस्करण : 2005

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