सफल लोगों के बारे में एक असफल आदमी की कविता
saphal logon ke bare mein ek asaphal adami ki kawita
प्रियदर्शन
Priyadarshan
सफल लोगों के बारे में एक असफल आदमी की कविता
saphal logon ke bare mein ek asaphal adami ki kawita
Priyadarshan
प्रियदर्शन
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मेरे आस-पास कई सफल लोग हैं
अपनी शोहरत के गुमान में डूबे हुए।
जब भी उन्हें कोई पहचान लेता है
वे ख़ुश हो जाते हैं
और अक्सर ऐसे मौक़ों पर अतिरिक्त विनयशील भी
जैसे जताते हुए कि उन्हें तो मालूम भी नहीं था कि वे इतने सफल और प्रसिद्ध हैं
और बताते हुए कि उन्हें तो पता भी नहीं है कैसे आती है सफलता और कैसे मिलती है प्रसिद्धि।
उनके चेहरों पर होती है थोड़ी-सी तृप्त और मासूम मुस्कुराहट
और साथ में हाथ झटकते हुए वे कभी-कभी मान भी बैठते हैं
कि जो भी मिला संयोग से मिला, वरना उन जैसे क़ाबिल लोग और भी हैं
कुछ तो उनसे भी क़ाबिल, जो उनके साथ बैठकर कभी अपनी क़लम और कभी अपनी कुंठा घिसते हैं।
इस अर्द्धसत्य में झूठ की मिलावट बस इतनी होती है
कि जिसे वे संयोग बताते हैं, उसे संभव करने के लिए उन्होंने जो कुछ किया
उसे वे छुपा ले जाते हैं।
सच है कि उनको देखकर थोड़ी-सी हैरानी होती है,
थोड़ा-सा अफ़सोस भी और थोड़ी-सी कुंठा भी।
कभी-कभी लगता है, क़िस्मत उन पर ज़्यादा मेहरबान रही
कि उन्हें वह सब मिलता गया, जिसकी कामना दूसरे करते हैं।
कभी-कभी लगता है, जब माँगने, हासिल करने या छीनने का वक़्त आया
तो ज़ुबान तालू से चिपक गई, आँख नीची हो गई, हाथों ने हिलने से इनकार कर दिया।
हक़ीक़त जो भी हो, एक बात समझ में आई
कि सफलता ऐसे ही नहीं मिलती है,
उसके कुछ छोड़ना भी पड़ता है, कुछ छीनना भी।
पहले अपने-आपको सफलता के लिए सुपात्र बनाना पड़ता है
जिसमें उचित जगह पर रिरियाने की, उचित जगह पर हँसने की, उचित जगह पर तारीफ़ करने की, उचित जगह पर निंदा करने की, उचित जगह पर चीख़ने की भी समझ और आदत विकसित करनी पड़ती है
जिसमें शुरू में तकलीफ़ होती है, लेकिन बाद में सब ठीक हो जाता है।
सफलता की गर्द धीरे-धीरे दिल के बोझ से ज़्यादा वज़नदार हो जाती है
और आदमी को हल्का-हल्का लगने लगता है।
फिर एक बार आप सफल हो गए तो आगे सफलता आपको बनाती है
कुंठित लोग पीछे छूट जाते हैं
अपनी असफलताओं के लिए दूसरों को ज़िम्मेदार ठहराते
ख़ुद के न बदलने की मायूसी के मारे
और ऐसी कविताएँ लिखते हुए, जिनमें नाकामी के लिए तर्क तलाशे जाते हैं।
लेकिन मेरे पास कोई तर्क नहीं है
इस फ़र्क़ के सिवा कि लिखने और बोलने से पहले आस-पास देखने और तोलने का अभ्यास कभी बन नहीं पाया।
- रचनाकार : प्रियदर्शन
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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