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संक्रमण में निर्गुण

sankrman mein nirgun

बद्री नारायण

बद्री नारायण

संक्रमण में निर्गुण

बद्री नारायण

और अधिकबद्री नारायण

    झुन-झुन-झुन

    झुनझुना बजाता घूमता है यमराज

    गली गली

    कभी लेमनचूस निकलता है

    कभी चिनिया बादाम

    कभी सोनपापड़ी दिखा भरमाता है

    बच्चो! बाहर निकलो नहीं

    माता-पिता सब घर में ही रहो

    रहो दरवाज़े के भीतर ही बिटिया और सुहागिनें

    राजा बचाएगा, संत

    उसने हवा-पानी हर जगह भर दिए हैं अपने दूत

    स्वप्न काले भैसों के सींग से भर गए हैं

    लेखक, कवि, गायक बचो इस प्रलय से

    बचो ग़रीब-ग़ुरबा, धनी-सम्राट

    देवी, देवता, डीहवार सब हैं चुपचाप

    बिल्कुल उदास है देवी की थान

    हो रही है जीवन की शाम

    अभी तो आई थी

    फिर गई उसकी आवाज़

    अरे विधाता यह वही हरकारा है

    मृत्यु का

    जो अपने के मरने का संदेश दे रहा है

    मन डूब रहा है

    ज़रा ध्यान से सुनो

    कानों में गूँज रही है मृत्यु की झन-झन करती आवाज़

    मानो साँझ की बेला में बोलते हैं अनंत झींगुर

    मणिकर्णिका में जैसी आह उठती है

    पूरे देश मे वैसी ही उठ रही है आह

    सृष्टि के किनारे बैठ कर रो रही है बिल्ली एक डरावनी रुलाई

    और पृथ्वी के केंद्र में एक ऊदबिलाव

    ऐसे में कैसे लिखूँ आस भरी कविता

    ऐसी मरण-बेला में

    कौन बचाएगा हमें

    कबीर तो ख़ुद ही अपने शिष्य की मृत्यु के बाद

    उसकी आत्मा की शांति के लिए गादी लगाने में लगे हैं

    और बुद्ध अभी-अभी एक मारक संक्रमण से उबरे हैं।

    स्रोत :
    • रचनाकार : बद्री नारायण
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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