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साम्य लहरी

samy lahri

अनुवाद : शंकरलाल पुरोहित

वीर किशोर दास

वीर किशोर दास

साम्य लहरी

वीर किशोर दास

और अधिकवीर किशोर दास

    कहाँ हो मुरारी, आओ सुदर्शन धारी।

    कितनी आकुलता में बाट देखे भारत संकट करो पार।

    आओ हिमाचल में आओ सीमाचल में

    आओ एकाग्र की गोद में।

    बीस कोटि सुत चित्त कर के पूत

    देखें वो रूप अपने नेत्रों से।

    सुनाई दे चारों वेद ओंकार शब्द

    जाए वो शक्ति संचरित

    पंचवटी जल हो वह समुज्ज्वल

    छूटे वो समय लहरी।

    सत्य पीर रूप दिखे वह स्वरूप

    गदा शंख चक्र से साज

    अगणित सुत अंग कर पूत

    पढ़ें क़ुरान आज।

    सारा भेदभाव सुदर्शन करे छेद

    बाइबल भी पूजी जाए।

    ईसा की कीरत बढ़ाए मानव प्रीत

    परहित में प्राण जाए।

    आएँ वे ब्राहम्ण रचें वे पद्मासन

    धारण कर पूत उपवीत।

    शुभ्र घंटाध्वनि, भर जाएँ स्वन

    धूप पुण्य भीनी गंध।

    आए आर्यबाला

    लेकर पद्माला

    पहनाए कौस्तुभ गले माला

    रहे उसका सतीत्व

    अपनी जाति का महत्व

    अपनी सुदर्शन तले।

    पढ़े मनुस्मृति गीता-भागवत

    कुशिक्षा पूतना चली जाए।

    लेकर भीष्म धैर्य

    पालन करे ब्रह्मचर्य

    यह दुर्भिक्ष राहु सरक जाए।

    दलित पतित ये सारे उपेक्षित

    सेवा कर तव चरणों तले।

    धरारानी को सजा दें

    धन-धान्य, फल-फूल से।।

    गो-वध शापित करे विषाक्त्त

    तुम्हारा यह तपोवन

    यक्ष धूप परस हो

    देश आज पूत हो

    सब पवित्र करें तन-मन।।

    आदमी पीए

    आदमी का ख़ून

    दूर हो अकाल मरण।

    समर शब्द

    हमारे कोश से,

    विचार से हो हरण।।

    स्रोत :
    • पुस्तक : बीसवीं सदी की ओड़िया कविता-यात्रा
    • संपादक : शंकरलाल पुरोहित
    • रचनाकार : वीर किशोर दास
    • प्रकाशन : साहित्य अकादेमी
    • संस्करण : 2009

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