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समय-समय के राग

samay samay ke rag

इकबाल दीप

इकबाल दीप

समय-समय के राग

इकबाल दीप

1

पहले तो

घर में

फूटते-फैलते थे

अनार हँसी के

मेरे ठहाकों के साथ

कभी लोग

हँसते थे

मुझ पर

अब

मुझे हँसी आती है

अपने-आप पर।

2

पक्षी उदासी के

फ़सल

कोई भी क्यों कुतरते

हम ताली पीटकर

उड़ान लेते, साँस आती

अब ख़ुद

कुतरे जा रहे हैं हम

और पक्षी ठुमकते हैं।

3

दरिया

बेचारा

तालाब में

बदल गया।

4

तब

बाग़-बाग़ हुए

सौंप दिया करते थे

बाग़ सारा

और अब

ख़ाक

खोज रही है ठिकाना।

स्रोत :
  • पुस्तक : बीसवीं सदी का पंजाबी काव्य (पृष्ठ 641)
  • संपादक : सुतिंदर सिंह नूर
  • रचनाकार : कवि के साथ अनुवादक फूलचंद मानव, योगेश्वर कौर
  • प्रकाशन : साहित्य अकादेमी
  • संस्करण : 2014

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