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समय को समझने की कुछ और कोशिशें

samay ko samajhne ki kuch aur koshishen

प्रियदर्शन

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समय को समझने की कुछ और कोशिशें

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और अधिकप्रियदर्शन

     

    एक

    समय वह अदृश्य झरना है जो हमारे आँसुओं से बनता है
    बेआवाज़ वह अनुपस्थिति जिसकी चहलक़दमी सबसे ज़्यादा महसूस होती है
    ये उसकी सड़कें नहीं, हमारे सीने हैं 
    जिन पर वह पाँव धरता है
    यह धरती उसकी बेडौल स्लेट है जिस पर किसी नटखट शिशु-सा वह खेलता है।

    हम वे अक्षर हैं जिन्हें वह लिखता है
    हम वे इबारतें हैं जिन्हें वह मिटाता है
    वह पहाड़ों से उतरता नदियों में मुँह धोता
    सूरज के आईने में अपनी बेआकार सुंदरता को निहारता है
    वह जो हमसे ले जाता है, वह सुख है
    वह जो हमें दे जाता है, वह दुख है
    वह बीत जाता है हम रीत जाते हैं
    हम बीता हुआ, रीता हुआ समय हो जाते हैं
    जो हमें याद करता है, दरअसल उस समय को याद करता है। 

    दो

    समय को पकड़ने की कोशिश कोई कैसे करे
    वह कल्पनाओं की बड़ी से बड़ी मुट्ठी में नहीं आता
    वह यादों की बड़ी से बडी संदूक़ में नहीं समाता
    कभी वह इतना सूक्ष्म हो जाता है कि दिखाई नहीं पड़ता
    कभी इतना विराट कि मापा नहीं जाता
    वह कभी इतना ठहरा हुआ लगता है कि 
    बर्फ़ की झील मालूम पड़े
    और कभी इतने उद्दाम वेग से भरा
    कि सूनामियाँ शरमाएँ-सिहर जाएँ
    यह समय जैसे कोई मायावी है
    कभी उसका एक पल युगों जैसा लगता है
    कभी-कभी कई युग पलक झपकते बीत गए लगते हैं
    वह कभी हमारे जिस्मों में बैठा मालूम होता है
    हमारे पुर्जे घिसता हुआ और उनकी एक्सपायरी डेट देखता हुआ
    कभी वह जिस्मों से बाहर दुनिया के सारे कोलाहल में व्याप्त नज़र आता है
    इस समय के साथ हमारा रिश्ता बड़ा अजीब है
    जो जितनी तेजी से बीतता है, हम उसके उतने ही ठहरे रहने की कामना करते हैं
    जो बिल्कुल ठहर जाता है, उसके किसी तरह बीत जाने की प्रार्थना करते हैं
    समय के साथ यह लुकाछिपी खेलते, कभी उसे बदलते, कभी उसके हिसाब से बदलते
    कहाँ तक चली आई है मनुष्यता।

    सोचा है यह कभी?

    तीन

    वह बहुत बड़ा वैज्ञानिक और गणितज्ञ रहा होगा
    जिसने पहली बार पहचाना होगा कि 
    सूरज के उगने और डूबने का समय बिल्कुल एक है
    उसकी निठल्ली एकाग्रता की कल्पना भी मुश्किल है
    जिसने एक-एक लम्हे को गिनते हुए जोड़ा होगा कि सूरज सिर तक आने में और फिर उतर कर विलीन हो जाने में
    कितना समय लेता है
    उसका साहस भी अनूठा होगा
    जिसने देखा होगा कि रात भी दिन की सहेली है
    दोनों मिलकर आते-जाते बनाते हैं जीवन का वह सिलसिला
    जो अब तक की सबसे बड़ी पहेली है
    और उसकी तो कल्पना करो
    जिसने मौसमों का हिसाब लगाया होगा
    सर्दियों में काँपते हुए, बौछारों में तर-ब-तर और
    गर्मियों में बिल्कुल लाल भभूका पाया होगा
    कि मौसम लौटकर आते हैं और ऋतुओं की भी लय होती है
    जिन्हें ठीक से समझ जाएँ तो आने वाले दिनों का स्वभाव समझा जा सकता है
    बेशक, ये सब एक दिन में नहीं हुए होंगे
    न जाने कितने अछोर बरस-दशक खप गए होंगे
    हो सकता है कुछ सदियाँ भी बह-बिला गई होंगी
    लेकिन यह इंसान होने का जुनून और करिश्मा न होता
    तो एक अनंत-अछोर, बेसिलसिला स्मृतिविहीनता में क्या डोलती नहीं रहती यह दुनिया?
    समय की बहुत परवाह न करने वाले इस समय में
    एक सलाम उनको करने को जी चाहता है
    जिन्होंने काल के चक्के को रोक कर उसकी धुरियाँ गिनीं
    और सभ्यता के सफ़र का ठीक-ठीक हिसाब लगा डाला।

    चार

    लेकिन हर समय एक-सा नहीं होता
    हमारी स्मृति में न जाने कितने लहूलुहान समय दर्ज हैं
    जो सिर्फ़ हमें ही नहीं, हमारी पूरी सभ्यता को टीसते रहेंगे 
    लेकिन उनके मुक़ाबले में एक स्मृति उन समयों की भी होगी
    जब प्रतिरोध ने मानवीय गरिमा को नए मानी दिए होंगे
    दरअसल हम सब इस समय में हैं,
    इस समय की संतानें हैं
    हम इस समय में ही बोते हैं, 
    इस समय में ही काटते हैं
    हम इस समय में ही पुकारते हैं, 
    इस समय में ही हारते हैं
    शुक्र है कि हम इस समय में जीतते भी हैं और जीतते हुए 
    अपना भरोसा भी जीतते हैं।

    न जाने कितने तूफ़ान हमारे ऊपर से गुज़र गए
    न जाने कितने ज़लज़लों ने हमारे नीचे की धरती खिसका डाली
    न जाने कैसे-कैसे सैलाब हमें बहाकर ले गए
    लेकिन समय में हमने अपना भरोसा बनाए रखा।

    इन दिनों भी हम जैसे एक सैलाब के सामने हैं
    बस इस उम्मीद की डोर थामे 
    कि एक दिन समय इस सैलाब को भी अपने साथ बहा ले जाएगा।

    पाँच

    समय को लेकर बुज़ुर्गों ने न जाने कितने मुहावरे गढ़े
    सलाह दी कि समय बहुत बलवान होता है, उससे डरो
    समझाया कि समय बहुत क़ीमती होता है, उसे बर्बाद न करो
    ताक़ीद की कि समय का सम्मान करना सीखो
    वह हमेशा एक जैसा नहीं होता
    असमय बेसमय कुसमय कुछ करने, न करने के नियम बनाए
    शुभ समय निकालने के ढेर सारे तरीक़े खोजे
    लेकिन समय से संग्राम जैसे चलता रहा
    अच्छे समयों में बुरी ख़बरें आती रहीं
    बुरे समयों में उम्मीदें माथा सहलाती रहीं
    यह भी सुना कि समय पंख लगाकर उड़ता है
    जब कभी ऐसा हुआ, तब पता ही नहीं चला
    कि वह समय था जो चला गया। 

    हमें तो ज़्यादातर वह कटे पंखों के साथ धरती पर गिरा मिला।

    इसी से समझ में आया
    समय कई तरह के होते हैं
    समय के विरुद्ध भी होता है एक समय
    अच्छे समय के पीछे हमेशा लगा रहता है बुरा समय
    हालाँकि जिन्होंने समय की बहुत ज़्यादा परवाह की
    वे भी ठीक से जी नहीं पाए
    और जिन्होंने समय को बहुत ज़्यादा साधना चाहा
    उन्होंने हासिल तो बहुत किया, 
    लेकिन सुखों को महसूस करना भूल गए
    जो समय से बेपरवाह रहे, उन्होंने बहुत सारे दुख उठाए
    जो समय से आगे रहे, उन्होंने ज़माने के हाथों बहुत सारे ज़ख़्म खाए
    लेकिन यह सच है कि दुनिया उन्होंने ही बनाई
    जिन्होंने समय को अपनी तरह से दी चुनौती
    उसको अपनी तरह से जिया
    और जीते-जीते नए सिरे से परिभाषित कर दिया।

    स्रोत :
    • रचनाकार : प्रियदर्शन
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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