समय ही सामर्थ्य देता है
samay hi samarthy deta hai
समय ही सामर्थ्य देता है, समय ही कामनाएँ
हम समय की यह नदी तैरें, नदी के पार जाएँ
नियति को चारा समझकर, अब न अपने हाथ रोकें
समय से आगे चलें, संभावना में उम्र झोंकें
आज हम जिस बिंदु पर हैं, समय की भटकी लहर है
मुख्य धारा में बहें, भटकाव तो मीठा ज़हर है
वंदना के नमन से उठकर, पुलक के गीत गाएँ
आज अपनी यात्रा का कारवाँ कुछ और लंबा
भले सोई हो अभी तक इंद्र के अँकवार रंभा
हम मचलती इन भुजाओं से समय को तोलते हैं
रक्त की संपत्ति लेकर, जय-पराजय मोलते हैं
क्यों सहें अब और मृग-मरीचिका-सी यातनाएँ
- पुस्तक : यह कैसी दुर्धर्ष चेतना (पृष्ठ 77)
- रचनाकार : कृष्ण मुरारी पहारिया
- प्रकाशन : दर्पण प्रकाशन
- संस्करण : 1998
Additional information available
Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.
About this sher
Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.
rare Unpublished content
This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.