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समय

samay

अनुवाद : वर्षादास

तुम गए तब

यहाँ बरस रही थी लू

चमचमाती धूप में

एक-दूजे को

पहचानते हो यूँ

वृक्ष की डाल पर

बैठे रहते उरेहे पंछी!

उकडूँ होकर पवन भी

पड़ा रहता यहाँ-वहाँ

कहीं अँगड़ाई लेता

एकचक्री शासन चलाते

सूरज के हिनहिनाते अश्व

घूम आते चारों ओर!

रात सपने में

कभी हवा की लहर

थोड़ी-सी दिल्लगी कर जाती

और आंदोलित हो उठता सारा विश्व

आज अचानक

काला घनघोर आकाश

उतर आया बहुत नीचे,

किवाड़ के पाये पर विश्राम लेने!

तड़ तड़ तड़ात् तड़ तड़ तड़ात्

पहुँची है बारिश की बौछार

ओलती तले पिरोती है

बूँद बूँद की माल

कुहूकें पंख फैलाकर

ढँक रही है एक-दूजे की गरमाहट

पवन ने खुली छोड़ दी है सरसराहट!

कहीं छुप गया है धुँधला सूरज

उसके तितर-बितर अश्व वो...चरते

उस मैदान में इंद्रधनुष के सातों रंग!

शायद

समय हो गया है तुम्हारे आने का!

स्रोत :
  • पुस्तक : आधुनिक गुजराती कविताएँ (पृष्ठ 94)
  • संपादक : वर्षा दास
  • रचनाकार : हर्षद त्रिवेदी
  • प्रकाशन : साहित्य अकादेमी
  • संस्करण : 2020

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