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सालता स्वप्न

salta swapn

अंजुम शर्मा

अंजुम शर्मा

सालता स्वप्न

अंजुम शर्मा

और अधिकअंजुम शर्मा

    बचपन से एक स्वप्न सालता है मुझे

    मैं दौड़ता रहता हूँ स्वप्न में अनवरत

    कभी लगाता हूँ इतनी लंबी छलाँग

    कि पार हो जाती हैं एक साथ चार गलियाँ

    नामालूम कहाँ और किससे भागता हूँ मैं

    मैंने हर संघर्ष का सामना शिवालिक की तरह किया है

    लेकिन यह एक स्वप्न बना देना चाहता है मुझे अरावली

    जहाँ मैं ख़ुद को बचाने का हर संभव प्रयास करता हूँ

    मेरे पीछे दौड़ती रहती है पुलिस और कुछ बिना वर्दी के बंदूक़धारी

    जबकि निजी जीवन में मैंने

    दाल के डिब्बे में छिपाए पाँच रुपए के सिवाय

    कभी कुछ नहीं चुराया

    कभी दग़ा नहीं किया

    ग़लतियाँ कीं तो हाथ जोड़े कई बार

    पर कभी किसी पर हाथ नहीं उठाया

    फिर भी दौड़ते हैं कुछ बौखलाए लोग लाठी लिए मेरे पीछे

    मैं हर अगली छलाँग पिछली से लंबी लगाता हूँ

    साँस भरता हूँ

    कि वे लोग फिर जाते हैं मुझे ढूँढ़ते-पूछते

    यह सिलसिला

    चलता रहता है सिहर कर मेरे जागने तक

    हम अक्सर जिन सपनों दुःस्वप्नों से पीछा छुड़ाना चाहते हैं

    वे उतनी ही ज़ोर से आँखों के दरवाज़े खटखटाते रहते हैं

    जीवन की आपाधापी में कितनी छलाँगें लगाते हैं हम

    कभी चिकने पत्थरों की तरह साथ बहते हैं नदी के

    तो कभी शिवालिक से बड़ा करके अपना क़द

    हो जाते हैं पीर-पांजाल

    पर कुछ होती हैं ऐसी बातें, ऐसी घटनाएँ, ऐसे सपने

    जो समझ से परे होते हैं,

    सालते रहते हैं उम्र भर,

    करते रहते हैं पीछा।

    स्रोत :
    • रचनाकार : अंजुम शर्मा
    • प्रकाशन : सदानीरा वेब पत्रिका

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