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सभ्यता और चूहे

sabhyata aur chuhe

घनश्याम कुमार देवांश

घनश्याम कुमार देवांश

सभ्यता और चूहे

घनश्याम कुमार देवांश

और अधिकघनश्याम कुमार देवांश

    मैं मनुष्य को चूहों में बदलते देख रहा हूँ

    चूहे जिन्हें अनाज के सिवा कुछ नहीं चाहिए

    उनकी अनंत कालजयी भूख

    उनके दाँतों में समा गई है

    जिसे लिए वे भटक रहे हैं

    हालाँकि ये सही है कि उनसे बचने को

    पाली गई हैं मोटी, फुर्तीली, चालाक, बिल्लियाँ

    लेकिन ये बिल्लियाँ एक दिन नाकाम साबित होंगी

    आदमी को चूहों से बचाने में

    वे आदमी की शक्ल में चूहे हैं

    जो चूहों को मारकर खा रहे हैं

    क्या तुम्हें ये देखकर ख़ौफ़ नहीं होता

    क्या तुम्हारी हड्डियों में कँपकँपी नहीं पैदा होती

    चूहों के भूखे नुकीले दाँतों को देखकर

    क्या तुम्हें सिहरन नहीं होती

    यदि हाँ, तो इसे स्कूल के सिलेबस में शामिल करो,

    चूहों के बीच जाकर रहो और सोचो कि उनकी भूख

    का ज़िम्मेदार कौन है

    बंद करो पत्थरों पर चूना लगाकर दीवारें गढ़ना

    बंद करो घरों के अहाते में

    ख़ूँख़ार कुत्ते और बिल्लियाँ तैनात करना

    उनके बिलों पर ज़हर मिली

    आटे की गोलियाँ डालना बंद करो

    मनुष्य होकर मनुष्यनुमा चूहे

    भूनना बंद करो

    मैं देखता हूँ करोड़ों अरबों चूहे दल बाँधकर

    सुरंगें खोद रहे हैं

    वे पूरे अमरीका और यूरोप में छा गए हैं

    वे नई दिल्ली और गुडगाँव के सीवरों में अपने पैने

    दाँत लिए आलीशान इमारतों की

    बुनियाद खोद रहे हैं

    सँभल जाओ इससे पहले एक सुरंग तुम्हारी क़ालीन के पीछे

    या किताबों की अलमारी में आकर खुले

    वे सब कुछ चबा जाएँगे

    तुम्हारे किचन की एक-एक रोटी

    तुम्हारे जिस्म की एक-एक बोटी

    देखना, तुम्हारे घर के ड्राइंग रूम में

    एक लाश पड़ी होगी जिसे चूहे कुतर रहे होंगे

    और तुम ये सोचकर अपने को जगाने की कोशिश कर

    रहे होंगे कि ये बस एक बेहूदा सपना है

    सब कुछ कुतर कर खा लेने के बाद वे तुम्हारी तरफ़ बढ़ेंगे

    तब तुम अपना आख़िरी हथियार चलाओगे

    तुम उन्हें संविधान और क़ानून

    की पोथियाँ दिखाओगे

    जिसे आजतक तुम उनसे बचाते आए हो

    तुम ज़ोर-ज़ोर से संविधान की धाराएँ पढ़ोगे

    लेकिन वह मौत के मर्सिये में बदल जाएगा

    वे तुम्हारे सामने एक एक पन्ना कुतर कर निगल जाएँगे

    उनके चेहरों पर एक भयानक

    और वीभत्स मुस्कान होगी

    जिसके आगे कुछ नहीं बचेगा

    तुम्हारी बनाई सभ्यताएँ चूहे लील चुके होंगे

    पूरी दुनिया पर सिर्फ़ चूहे होंगे

    उनके दाँत होंगे

    और होगी उनकी अनंत भूख

    तुम पछताने के लिए नहीं रह जाओगे

    कि काश तुमने सभ्यता, अनाज और संविधान को

    उनसे साझा कर उन्हें चूहा

    हो जाने से बचा लिया होता।

    स्रोत :
    • रचनाकार : घनश्याम कुमार देवांश
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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