प्रभु, इन संकट की घड़ियों में
अपने लिए प्रार्थना करने का
दुस्साहस कौन करेगा?
हम पापिष्ठों को तुम अपने क्रोधानल में
भले भस्म कर डालो,
लेकिन इन बच्चों के प्राण बचाओ!
इन बच्चों के
जो गलियों में, दिन की उजियाली घड़ियों में,
खेल-खेलकर खेल युद्ध का शोर मचाते,
संध्या को घुसमुड़ सो जाते,
इन बच्चों के—
जो सड़को पर घूम-घूम अख़बार बेचते,
भीम भयंकर ख़बरों का नारा बुलंद कर,
और अचंभा करते, हम क्यों
घबरा उठते उनकी भोली-भाली आँखें देख-देखकर,
इन बच्चों के—
जो अपने गुड्डे-गुड़ियों की
रक्षा करने को उनको तकियों के नीचे
लुका-छिपाकर धर लेते सोने से पहले,
जो अपने पापा के पाँवों की
आहट को अनका करते, और पूछते,
माँ, वे कब वापस आएँगे?—
प्रभु, इन सबके प्राण बचाओ।
हे भगवन्, बिना इन बच्चों के
जीवन सूना,
और मृत्यु की छाया हम पर।
प्रभु, तुम हमसे जीवन का आनंद न छीनो,
जीवन की अंतिम आशाएँ।
बच्चों का उल्लास हास जब हम न सुनेंगे
हम भूलेंगे झरनों का संगीत,
हवा में हरे वृक्ष का हरहर-मरमर,
हम भूलेंगे तेरा भी स्वर।
अगर न बच्चों की आँखों को हम देखेंगे,
हम भूलेंगे तारे हैं किस भाँति चमकते,
और प्रात: में कैसे उनकी पलकें झपती,
हम तेरी ही आँखों को बिसरा बैठेंगे।
और थका-माँदा मनुष्य यह
बच्चों के छोटे बिस्तर के पास खड़ा
हो कभी नहीं यह कह पाएगा,
हे प्रभु कैसी अद्भूत ज्योति यहाँ जगती है।
क्या अद्भुत आनंद हृदय में समा रहा है।
यही हमारे अंतिम आश्वासन हैं,
हमसे इन्हें न बिलगा,
यही सीढ़ियाँ हैं वे छोटी
जिनके द्वारा बड़े-से-बड़े पापाचारी
तुझको पाकर
बन जाते हैं तेरी करुणा के अधिकारी।
- पुस्तक : चौंसठ रूसी कविताएँ (पृष्ठ 151)
- रचनाकार : इलिया एहरेनबुर्ग
- प्रकाशन : राजपाल एंड संस
- संस्करण : 1964
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