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दो अप्रैल को जन्म सब कुछ के लिए प्रार्थना

do april ko janm sab kuch ke liye pararthna

नवीन सागर

नवीन सागर

दो अप्रैल को जन्म सब कुछ के लिए प्रार्थना

नवीन सागर

और अधिकनवीन सागर

    जिस दिन को हम दो अप्रैल कहते हैं

    यह तमाम दिनों में से इस क़दर बिना चुने

    दो अप्रैल है कि हर दिन

    दो अप्रैल होने को स्वतंत्र है और हम

    इतना कम जानते हैं

    रहस्यों भरे संसार को

    कि अचरज नहीं अगर पूरा काल एक दिन है

    जिसे तारीख़ दो अप्रैल कहते हैं

    बाक़ी तीन सौ चौंसठ तारीख़ों की प्रार्थना

    इसी प्रार्थना में

    ऐसे समाहित है कि जैसे काल समूचा

    एक पल में सन्निहित

    हम फैलते हुए आयतन में घनत्व की चेतना

    हम अनंत की लघुता में शून्य

    हम निःशब्द संसार में निस्सीम शब्दों की प्रार्थना हैं

    हम अपने बारे में इतना कम

    और इतना अधिक जानते हैं कि

    प्रेम ही बचता है प्रार्थना की राख में

    अकेली एक लहर पूरे समुद्र की जगह बचती है

    जब हम भूल जाते हैं जीना

    अनंत अपनी मृत्यु में रहते हैं इतने धुँधले

    कि हमारी झलक में बार-बार जन्म लेते हैं संसार!

    सारे जन्मों में हमीं जन्म लेकर जन्मों की प्रार्थना गाते हैं

    हमीं जाते हैं

    हमीं रह जाते हैं

    आज दो अप्रैल है और मुझे लग रहा है

    इसके अलावा आज कुछ नहीं है

    आज के दिन जो कुछ भी जन्मा है

    उसकी प्रार्थना ही आज का दिन है

    धरती घूम रही है

    फूलों से लदी

    आसमान में बधावे बज रहे हैं।

    स्रोत :
    • पुस्तक : जब ख़ुद नहीं था (पृष्ठ 31)
    • रचनाकार : नवीन सागर
    • प्रकाशन : कवि प्रकाशन
    • संस्करण : 2001

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