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बारिश

barish

केदारनाथ सिंह

वह अचानक शुरू हुई

बकरियाँ उसके लिए बिल्कुल तैयार नहीं थीं

वे देर तक—चीखती-चिल्लाती रहीं

मगर पानी पूरी ताक़त के साथ

गटर और उसके गोश्त में उतरता जा रहा था

उनके थन भींगकर भारी हो गए थे

यह सींझने की तैयारी थी

एक तेज़ और लंबी जिरह की शुरुआत

जिसमें खजूर के पत्ते तक

हिस्सा ले रहे थे

जिरह के बीचोंबीच एक गधा खड़ा था

खड़ा था और भीग रहा था

पानी उसकी पीठ और गर्दन की

तलाशी ले रहा था

उसके पास छाता नहीं था

सिर्फ़ जबड़े थे जो पूरी ताक़त के साथ

बारिश और सारी दुनिया के ख़िलाफ़

बंद कर लिए गए थे

यह सामना करने का

एक ठोस और कारगर तरीक़ा था

जो मुझे अच्छा लगा

बौछारें

तेज़ होती जा रही थीं

पहली बार लगा

कोई किसी को पीट रहा है

जैसे अँधेरे में दरवाज़े पीटे जाते हैं

जो पिट रहा था

उसे देखना मुश्किल था

सिर्फ़ उसकी पीठ से ख़ून गिर रहा था

सिर्फ़ उसके जूते सड़क पर पड़े थे

और बारिश पूरी मुस्तैदी के साथ

उनकी निगरानी कर रही थी

जूते

बारिश में भीगकर

एक अजब ढंग से ख़ूबसूरत लग रहे थे

गधा अब भी उसी तरह खड़ा था

सिर्फ़ उसके जबड़े

कुछ और सख़्त हो गए थे

कुछ और मोटे

कुछ और बेडौल

गधा इतना भीग चुका था

कि अब वह

उस पूरे दृश्य के

नायक की तरह लग रहा था।

स्रोत :
  • पुस्तक : प्रतिनिधि कविताएँ (पृष्ठ 51)
  • संपादक : परमानंद श्रीवास्तव
  • रचनाकार : केदारनाथ सिंह
  • प्रकाशन : राजकमल प्रकाशन
  • संस्करण : 1985

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