बचपन ज़रूर कुछ कटु रहा
बाद के जीवन में भी दुनिया और लोग अपनी
क्रूरताओं के साथ
लगातार उपस्थित रहे ही हैं
लेकिन यह जीवन प्यार से रिक्त रहा हो अब तक
ऐसा भी नहीं
अभी-भी जीवन में वर्तमान हैं
नदियों को हर सुबह हर शाम यूँ ही निहार आने वाले
हर फ़िरक़े के असहाय लोग
अत्यंत भ्रष्ट और मूर्ख विधायक नदी को
या नदी के सिल्ट को देखकर हाथ जोड़ता है
या अफ़सोस के साथ कुछ बुदबुदाता है,
जिसका वे कुछ नहीं कर सकते जो करेगा ईश्वर करेगा
ऐसा मानने वाले भले लोग
अब उसे प्यार कहूँ दूरदर्शिता कहूँ
एक वृहत्तर कन्सर्न कहूँ कि अधिकारी या बड़े आदमी
एक पुराना तालाब तो क्रमशः पाट देते हैं
लेकिन अफ़सोस के साथ
और प्रतिबद्धता के साथ
एक नया तालाब एक नया मॉल एक नई सड़क
सड़क के किनारे नए पेड़ नई बेंचें नई सुंदरताएँ आदि की क़सम उठाते हैं
हेंहें कहकर लोग विरोध जताते हैं
विकास के पक्ष में लोलुप मुंडी हिलाते हैं
पर इस प्रसंग में ऐसा सामान्यीकरण नहीं होगा
कि दुनिया में सिर्फ़ दो लोग हैं अफ़सर और हम
और भी लोग होंगे
जीवन को भरने के बारे में जिनके प्यार की चर्चा की जाती रही है
संसार में जो कुछ भी घटता है
उसमें अंततः कुछ अच्छा ही होने को है
और सारे लोगों की हर तरह की बातों में और कामों में
अंततः प्यार और लगाव का ही हाथ है
ऐसा मानने वाली सकारात्मकता की सनातन भारतीयता
मेरे पहलू से उठकर किधर चली जाती है आजकल
मैं घबराकर उसे लोगों, जानवरों, वृक्षों और नदियों में खोजने लगता हूँ
जो लोग बहुत क्रूर रहे और आत्मा पर जिनकी क्रूरता के कभी न भरने वाले घाव हैं
वे जीवन-व्यापार में अत्यंत असहाय
और उनकी सीखें अक्सर मुश्किलों से उबारने वाली
नितांत साधारण और खीझ दिलाने वाले लद्धड़ लोग
और हिंदी में प्रचलित प्रेम के सिद्धांतों के हिसाब से
अत्यंत शुष्क लोग दरअसल इतने पके
और मीठे और मुलायम फल हैं
कि उन सिद्धांतों में उनकी समाई नहीं है
प्रेम कविताओं से बाहर के ये लोग
बिना कुछ साबित करने की लालसा के
और साबित करने की महत्त्वाकांक्षी संभावनाओं से अपरिचित लोग
नदियों को निहार आएँगे विधायक को गरियाएँगे
कभी तालाब का पाटा जाना देखकर असहायता से
सामने मुस्कुराएँगे पीछे रोएँगे
पेड़ को देखकर आश्वस्त होंगे जानवरों को कभी नहीं मारेंगे
और प्यार का नाम सुनकर
उसे करने में अपने आपको मानेंगे सर्वथा असमर्थ
- रचनाकार : अमन त्रिपाठी
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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