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शहरों संग आकर्षण

shahron sang akarshan

रविंदर सहराअ

रविंदर सहराअ

शहरों संग आकर्षण

रविंदर सहराअ

और अधिकरविंदर सहराअ

    एक अर्से बाद

    लौट रहा हूँ

    उस शहर की ओर

    जहाँ दबा आया था

    असंख्य पल

    पल, कड़वे-कसैले

    खट्टे मीठे

    चमकीले-मैले

    सीमा में घुसते ही

    धड़कने लगा दिल

    जैसे कभी धधकता था

    फगवाड़ा, जालंधर के लिए

    कुछ सँभलता हूँ

    सोचते हुए

    शहर के साथ सम्मोहन

    नहीं चाहिए इतना

    चूँकि

    शहर किसी के सगे नहीं होते

    कभी ये दोमुँहे दोस्तों से

    पीठ पीछे हँसते हैं

    कभी राज की बातों को

    खुलेआम बताया करते

    शहरों के लिए भावुक होकर

    आप बाढ़ में बहते

    और वे किले की तरह खड़े रहते

    ख़ुशामदीद, अलविदा भी

    नहीं कहते

    व्यस्त हो जाते हैं आने वाले

    नए नागरिकों के साथ।

    स्रोत :
    • पुस्तक : बीसवीं सदी का पंजाबी काव्य (पृष्ठ 371)
    • संपादक : सुतिंदर सिंह नूर
    • रचनाकार : कवि के साथ अनुवादक फूलचंद मानव, योगेश्वर कौर
    • प्रकाशन : साहित्य अकादेमी
    • संस्करण : 2014

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