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पुलिया पर मोची

puliya par mochi

विपिन चौधरी

विपिन चौधरी

पुलिया पर मोची

विपिन चौधरी

पुलिया जाने कब से है यहाँ

पीपल के नीचे बैठा यह मोची भी

पेड़ की उम्र से मोची की उम्र का पता चलता है

मोची की उम्र से पेड़ का और पानी की गति का भान होता है

बिना लाग-लपेट के जो पुल के नीचे से बहता है

बचपन में इस पुलिया के ऊपर से गुज़रना

चलते-चलते थक जाने पर

माँ की गोद के लिए मचलना

पुलिया में अपनी परछाई

देख ख़ुश होना आज भी गुज़रे दिनों की सबसे मधुरतम याद है

इसी पुल पर

जूते गाँठता दिखता था तब भी यह मोची

पुलिया और मोची का

उतना आकर्षण नहीं था तब

बचपन कई दूसरी ही चीज़ों

के लिए बना है

कुछ वर्षों के बाद

इसी पुलिया से कॉलेज जाना

गर्दन झुकाए गाँठता था तब भी जूते यह मोची

दुनिया की कभी ख़त्म होने वाली यात्राएँ

और मोची का यूँ आलथी-पालथी मारे बैठे रहना

दुनियादारी में सेंध लगाने की

उम्र में चुकी हूँ

पुलिया और मोची आज भी यहीं मौजूद हैं

पूरी तरह रुई हो चुके अपने बालों के साथ है बैठा है यहीं पुलिया पर मोची

मटमैले पानी के साथ बहता है पुलिया नीचे पानी मद्धम-मद्धम आज भी

आधुनिकता ने जुटाया है बहुत कुछ

पर इस मोची के पास तो बरसों पुरानी

वही काली, भूरी पॉलिश

चमड़े के कुछ टुकड़े और

कई छोटे-बड़े बुश और

सिर पर घनी छाया है

जो थोड़ी झड़ गई है मगर दोनों की झोली में है ज़िंदगी का पानी

शहर का सबसे सिद्धहस्त मोची होने का

एहसास नहीं उसे तनिक

हज़ारों कारीगरों की तरह ही

उसके हुनर को नहीं मिला कोई पदक

कई लोग तो यह भी सोचते होंगे

फटे जूतों को सीना भी है कोई हुनर?

यही लोग भीतर ही भीतर जानते हैं

फटे जूतों के साथ चलना

है कितना दुष्कर

यह बात अलग है

पहनते हैं अब वे ड्यूरेबल जूते

यह मोची, पीपल, पुलिया और बहते हुए पानी के

तिलिस्म की कविता नहीं है

यह सच्चाई है

जो मौजूद है केवल

कविता की सौंधी मिट्टी में

हमेशा की ज़रूरत है

पुल भी

मोची भी

पेड़ के नीचे बहता मटमैला पानी भी

जिसमें नहीं आती कोई छवि अब पहले सी साफ़-स्पष्ट

स्रोत :
  • रचनाकार : विपिन चौधरी
  • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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