एक पोस्टर कविता
एक
ग़रीबों-मज़लूमों के नौजवान सपूतो!
उन्हें कहने दो कि क्रांतियाँ भर गईं
जिनका स्वर्ग है इसी व्यवस्था के भीतर।
तुम्हें तो इस नर्क से बाहर
निकलने के लिए
बंद दरवाज़ों को तोड़ना ही होगा,
आवाज़ उठानी ही होगी
इस निज़ामे-कोहना के ख़िलाफ़।
यदि तुम चाहते हो
आज़ादी, न्याय, सच्चाई, स्वाभिमान
और सुंदरता से भरी ज़िंदगी
तो तुम्हें उठाना ही होगा
नए इंक़लाब का परचम फिर से।
उन्हें करने दो ‘इतिहास के अंत’
और ‘विचारधारा के अंत’ की अंतहीन बकवास।
उन्हें पीने दो पेप्सी और कोक और
थिरकने दो माइकल जैक्सन की
उन्मादी धुनों पर।
तुम गाओ
प्रकृति की लय पर ज़िंदगी के गीत।
तुम पसीने और ख़ून और
मिट्टी और रोशनी की बातें करो।
तुम बग़ावत की धुनें रचो।
तुम इतिहास के रंगमंच पर
एक नए महाकाव्यात्मक नाटक की
तैयारी करो।
तुम उठो,
एक प्रबल वेगवाही
प्रचंड झंझावात बन जाओ।
दो
स्मृतियों से कहो
पत्थर के ताबूत से बाहर आने को।
गिर जाने दो
पीले पड़ चुके पत्तों को,
उन्हें गिरना ही है।
बिसूरो मत,
न ही ढिंढोरा पीटो
यदि दिल तुम्हारा सचमुच
प्यार से लबरेज़ है।
तब कहो कि विद्रोह न्यायसंगत है
अन्याय के विरुद्ध।
युद्ध को आमंत्रण दो
मुर्दाशांति और कायर-निठल्ले विमर्शों के विरुद्ध।
चट्टान के नीचे दबी पीली घास
या जज़्ब कर लिए गए आँसू के क़तरे की तरह
पिता के सपनों
और माँ की प्रतीक्षा को
और हाँ, कुछ टूटे-दरके रिश्तों और यादों को भी
रखना है साथ
जलते हुए समय की छाती पर यात्रा करते हुए
और तुम्हें इस सदी को
ज़ालिम नहीं होने देना है।
रक्त के सागर तक फिर पहुँचना है तुम्हें
और उससे छीन लेना है वापस
मानवता का दीप्तिमान वैभव,
सच के आदिम पंखों की उड़ान,
न्याय की गरिमा
और भविष्य की कविता
अगर तुम युवा हो।
तीन
जहाँ स्पंदित हो रहा है वसंत
हिंस्र हेमंत और सुनसान शिशिर में
वहाँ है तुम्हारी जगह
अगर तुम युवा हो!
जहाँ बज रही है भविष्य-सिम्फ़नी
जहाँ स्वप्न-खोजी यात्राएँ कर रहे हैं
जहाँ ढाली जा रही हैं आगत की साहसिक परियोजनाएँ,
स्मृतियाँ जहाँ ईंधन हैं,
लुहार की भाथी की कलेजे में भरी
बेचैन गर्म हवा जहाँ ज़िंदगी को रफ़्तार दे रही है,
वहाँ तुम्हें होना है अगर तुम युवा हो!
जहाँ दर-बदर हो रही है ज़िंदगी,
जहाँ हत्या हो रही है जीवित शब्दों की
और आवाज़ों को क़ैद-तन्हाई की
सज़ा सुनाई जा रही है,
जहाँ निर्वासित वनस्पतियाँ हैं
और काली तपती चट्टानें हैं,
वहाँ तुम्हारी प्रतीक्षा है
अगर तुम युवा हो!
जहाँ संकल्पों के बैरिकेड खड़े हो रहे हैं
जहाँ समझ की बंकरें ख़ुद रही हैं
जहाँ चुनौतियों के परचम लहराए जा रहे हैं
वहाँ तुम्हारी तैनाती है
अगर तुम युवा हो।
चार
चलना होगा एक बार फिर
बीहड़, कठिन, जोखिम भरी सुदूर यात्रा पर,
पहुँचना होगा उन ध्रुवांतों तक
जहाँ प्रतीक्षा है हिमशैलों को
आतुर हृदय और सक्रिय विचारों के ताप की।
भरोसा करना होगा एक बार फिर
विस्तृत और आश्चर्यजनक सागर पर।
उधर रहस्यमय जंगल के किनारे
निचाट मैदान के अँधेरे छोर पर
छिटक रही हैं जहाँ नीली चिंगारियाँ
वहाँ जल उठा था कभी कोई हृदय
राहों को रौशन करता हुआ।
उन राहों को ढूँढ़ निकालना होगा
और आगे ले जाना होगा
विद्रोह से प्रज्वलित हृदय लिए हाथों में
सिर से ऊपर उठाए हुए,
पहुँचना होगा वहाँ तक
जहाँ समय टपकता रहता है
आकाश के अँधेरे से बूँद-बूँद
तड़ित उजाला बन।
जहाँ नीली जादुई झील में
प्रतिपल काँपता रहता अरुण कमल एक,
वहाँ पहुँचने के लिए
अब महज़ अभिव्यक्ति के नहीं
विद्रोह के सारे ख़तरे उठाने होंगे,
अगर तुम युवा हो।
पाँच
गूँज रही हैं चारों ओर
झींगुरों की आवाज़ें।
तिलचट्टे फदफदा रहे हैं
अपने पंख।
जारी हैं अभी भी नपुंसक विमर्श।
कान मत दो इन पर।
चिंता मत करो।
तुम्हारे सधे क़दमों की धमक से
सहमकर शांत हो जाएँगे
अँधेरे के सभी अनुचर।
जियो इस तरह कि
आने वाली पीढ़ियों से कह सको—
‘हम एक अँधेरे समय में पैदा हुए
और पले-बढ़े
और लगातार उसके ख़िलाफ़ सक्रिय रहे’
और तुम्हें बिल्कुल हक़ होगा
यह कहने का बशर्ते कि
तुम फ़ैसले पर पहुँच सको
बिना रुके, बिना ठिठके।
मत भूलो कि देर से फ़ैसले पर पहुँचना
आदमी को बूढ़ा कर देता है।
जीवन के प्याले से छककर पियो
और लगाओ चुनौती भरे ठहाके
पर कभी न भूलो उनको
जिनके प्याले ख़ाली हैं।
आश्चर्यजनक हों तुम्हारी योजनाएँ
पर व्यावहारिक हों।
सागर में दूर तक जाने की
बस ललक भर ही न हो,
तुम्हारी पूरी ज़िंदगी ही होनी चाहिए
एक खोजी यात्रा।
सपने देखने की आदत
बनाए रखनी होगी
और मुँह-अँधेरे जागकर
सूरज की पहली किरण के साथ
सक्रिय होने की आदत भी
डाल लेनी होगी तुम्हें।
कुछ चीज़ें धकेल दी गई हैं
अँधेरे में।
उन्हें बाहर लाना है,
जड़ों तक जाना है
और वहाँ से ऊपर उठना है
टहनियों को फैलाते हुए
आकाश की ओर।
सदी के इस छोर से
उठानी है फिर आवाज़
‘मुक्ति’ शब्द को
एक घिसा हुआ सिक्का होने से
बचाना है।
जनता की सुषुप्त-अज्ञात मेधा तक जाना है
जो जड़-निर्जीव चीज़ों को
सक्रिय जीवन में रूपांतरित करेगी
एक बार फिर।
जीवन से अपहृत चीज़ों की
बरामदगी होगी ही एक न एक दिन।
आकाश को प्राप्त होगा
उसका नीलापन,
वृक्षों को उनका हरापन,
तुषारनद को उसकी श्वेतमा
और सूर्योदय को उसकी लाली
तुम्हारे रक्त से,
अगर तुम युवा हो।
छह
जब तुम्हें होना है
हमारे इस ऊर्जस्वी, संभावनासंपन्न,
लेकिन अँधेरे, अभागे देश में
एक योद्धा शिल्पी की तरह
और रोशनी की एक चटाई बुननी है
और आग और पानी और फूलों और पुरातन पत्थरों से
बच्चों का सपनाघर बनाना है,
तुम सुस्ता रहे हो
एक बूढ़े बरगद के नीचे
अपने सपनों के लिए एक गहरी क़ब्र खोदने के बाद।
तुम्हारे पिताओं को उनके बचपन में
नाज़िम हिकमत ने भरोसा दिलाया था
धूप के उजले दिन देखने का,
अपनी तेज-रफ़्तार नावें
चमकीले-नीले-खुले समंदर में दौड़ाने का।
और सचमुच हमने देखे कुछ उजले दिन
और तेज़-रफ़्तार नावें
चमकीले-नीले-खुले समंदर में दौड़ाने का।
और सचमुच हमने देखे कुछ उजले दिन
और तेज-रफ़्तार नावें लेकर
समंदर की सैर पर भी निकले।
लेकिन वे थोड़े से उजले दिन
बस एक बानगी थे,
एक झलक-मात्र थे,
भविष्य के उन दिनों की
जो अभी दूर थे और जिन्हें तुम्हें लाना है
और सौंपना है अपने बच्चों को।
हमारे देखे हुए उजले दिन
प्रतिक्रिया की काली आँधी में गुम हो गए दशकों पहले
और अब रात के दलदल में
पसरा है निचाट सन्नाटा,
बस जीवन के महावृत्तांत के समापन की
कामना या घोषणा करती बौद्धिक तांत्रिकों की
आवाज़ें सुनाई दे रही हैं यहाँ-वहाँ
हम नहीं कहेंगे तुमसे
सूर्योदय और दूरस्थ सुखों और सुनिश्चित विजय
और वसंत के उत्तेजक चुंबनों के बारे में
कुछ बेहद उम्मीद भरी बातें
हम तुम्हें भविष्य के प्रति आश्वस्त नहीं
बेचैन करना चाहते हैं।
हम तुम्हें किसी सोए हुए गाँव की
तंद्रिलता की याद नहीं,
बस नायकों की स्मृतियाँ
विचारों की विरासत
और दिल तोड़ देने वाली पराजय का
बोझ सौंपना चाहते हैं
ताकि तुम नए प्रयोगों का धीरज सँजो सको,
आने वाली लड़ाइयों के लिए
नए-नए व्यूह रच सको,
ताकि तुम जल्दबाज़ योद्धा की ग़लतियाँ न करो।
बेशक थकान और उदासी भरे दिन
आएँगे अपनी पूरी ताक़त के साथ
तुम पर हल्ला बोलने और
थोड़ा जी लेने की चाहत भी
थोड़ा और, थोड़ा और जी लेने के लिए लुभाएगी,
लेकिन तब ज़रूर याद करना कि किस तरह
प्यार और संगीत को जलाते रहे
हथियारबंद हत्यारों के गिरोह
और किस तरह भुखमरी और युद्धों और
पागलपन और आत्महत्याओं के बीच
नए-नए सिद्धांत जनमते रहे
विवेक को दफ़नाए हुए
नए-नए सिद्धांत जन्मते रहे
विवेक को दफ़नाते हुए
नई-नई सनक भरी विलासिताओं के साथ।
याद रखना फ़िलिस्तीन और इराक़ को
और लातिन अमेरिकी लोगों के
जीवन और जंगलों के महाविनाश को,
याद रखना सब कुछ राख कर देने वाली आग
और सब कुछ रातोंरात बहा ले जाने वाली
बारिश को,
धरती में दबे खनिजों की शक्ति कोख
गुमसुम उदास अपने देश के पहाड़ों के
निःश्वासों को,
ज़हर घोल दी गई नदियों के रुदन को,
समंदर किनारे की नमकीन उमस को
और प्रतीक्षारत प्यार को।
एक गीत अभी ख़त्म हुआ है,
रो-रोकर थक चुका बच्चा अभी सोया है,
विचारों को लगातार चलते रहना है
और अंततः लोगों के अंतस्तल तक पहुँचकर
एक अनंत कोलाहल रचना है
और तब तक,
तुम्हें स्वयं अनेकों विरूपताओं
और अधूरेपन के साथ
अपने हिस्से का जीवन जीना है
मानवीय चीज़ों की अर्थवत्ता की बहाली के लिए
लड़ते हुए
और एक नया सौंदर्यशास्त्र रचना है।
तुम हो प्यार और सौंदर्य और नैसर्गिकता की
निष्कपट कामना,
तुम हो स्मृतियों और स्वप्नों का द्वंद्व,
तुम हो वीर शहीदों के जीवन के वे दिन
जिन्हें वे जी न सके।
इस अँधेरे, उमस भरे कारागृह में
तुम हो उजाले की खिड़कियाँ,
अगर तुम युवा हो!
- पुस्तक : कोहेक़ाफ़ पर संगीत-साधना (पृष्ठ 33)
- संपादक : कात्यायनी और सत्यम
- रचनाकार : शशिप्रकाश
- प्रकाशन : परिकल्पना प्रकाशन
- संस्करण : 2006
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