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बाढ़िक भासल लोककेर

सुरता तँ सभ ल' रहलै

बरखे सँ जे दहा गेल छै

ओकर पुछारी के करतै!

छहर-नहर सभ टुटला सँ

क्षतिक आकलन भ' जेतै

गाम, शहर मे जल ढुकला सँ

सुन्न घराड़ी के देखतै!

सूखि गेलै नबगछुली रोपल

भासल पोखरिक माछ कते

लगता बूड़ि गेलै रोपनि के

पुड़दारी से के करतै!

सूप-सुपाइन अति बरखा सँ

बान्ह सड़क काटल गेलै

आवागमन जे वाधित भेलै

दिकदारी से के हेरतै!

सरदी खाँसी जर भदबरिया

सर्प दंश केर अबै खबरि

खेत उपछि माछ खयला सँ

बढ़ल बेमारी के हरतै!

छै बेलल्ला माल-जाल सभ

मूंहों रोपतै जाए कतय

भुसकाँरो केर भुस्सा तितलै

एकचारी से के धरतै!

स्रोत :
  • पुस्तक : नमहर हो चद्दरि जटबए (पृष्ठ 89)
  • रचनाकार : अमरनाथ झा ‘अमर’
  • प्रकाशन : अनुप्रास प्रकाशन
  • संस्करण : 2021

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