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प्रिय, जीवन-नद अपार

priy, jiwan nad apar

बालकृष्ण शर्मा नवीन

बालकृष्ण शर्मा नवीन

प्रिय, जीवन-नद अपार

बालकृष्ण शर्मा नवीन

और अधिकबालकृष्ण शर्मा नवीन

     

    प्रिय, जीवन- नद अपार,
    विशद पाट, तीव्र धार,  गहर भँवर, दूर पार,— 
    प्रिय, जीवन-नद अपार।

    एक

    इस तट पर ना जाने कब से रम रहे प्राण,
    ना जाने कितने युग बीत चुके शून्य मान, 
    पर, अब की उस तट से आई है वेणु-तान, 
    खींच रही प्राणों को बरबस ही बार-बार
    प्रिय, जीवन-नद अपार।

    दो

    किस विधि नद करूँ तरित? पहुँचूँ उस पार, सजन? 
    कच्चा घट, जल-संकट, लहर, भँवर, तीव्र व्यजन; 
    भय है, गल जाएगा यह मम तरणोपकरण,
    दुस्तर-सी लगती है जीवन की तीव्र धार;
    प्रिय, जीवन-नद अपार।

    तीन

    यदि वाहित करना था जीवन-नद वेग-युक्त,— 
    तो यह रज-भाजन भी कर देते अग्नि-भुक्त; 
    पर यह तो कच्चा है, हे मेरे बन्ध मुक्त, 
    हैं इसमें छिद्र कई, और अनेकों विकार;
    प्रिय, जीवन-नद अपार।

    चार

    पहले इसके कि करो सजन वेणु-वादन तुम,— 
    पहले इसके कि करो स्वर का आराधन तुम,— 
    भेज अग्नि-पुंज, करो पक्का रज-भाजन तुम,
    छूट जाए जिससे यह तरण- मरण-भीति-रार;
    प्रिय, जीवन-नद अपार।

    स्रोत :
    • पुस्तक : कविता सदी (पृष्ठ 94)
    • संपादक : सुरेश सलिल
    • रचनाकार : बालकृष्ण शर्मा 'नवीन'
    • प्रकाशन : राजपाल एंड संस
    • संस्करण : 2018

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