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प्रेतात्माओं का स्वाँग

pretatmaon ka swang

वीरू सोनकर

वीरू सोनकर

प्रेतात्माओं का स्वाँग

वीरू सोनकर

और अधिकवीरू सोनकर

    प्रेतात्माएँ पेड़ों से उतर कर दौड़ रही हैं

    हँस रही हैं लाइब्रेरियों में

    उन्होंने मेकअप की दुकानों को लूट लिया है

    वे देव मंदिरों के बाहर से नग्न गुज़र रही हैं

    अपने रज का तिलक पुजारी के माथे पर लीप कर

    एक प्रेतात्मा ने कहा है

    ये तुमसे नहीं धुलेगा अब!

    अज़ान से तेज़, अब इनकी आवाज़ है

    ट्रकों और टैंकों पर सवार होकर वे रौंद रही हैं तमाम धर्म-संहिताओं को

    स्त्री-वर्जनाओं के तमाम इतिहासों की क़ब्रें

    अब खुली पड़ी हैं

    पोप की कुर्सी लूट ली गई है

    धर्मदंड अब एक उदंड प्रेतात्मा के हाथ में है

    प्रेतात्माएँ खेल रही हैं समय-सुरंगों से

    खींच कर निकाल रही हैं हर इतिहास अपराधी को

    और घुस गई हैं सब एक शमशान में

    ढूँढ़ रही हैं जिनकी पत्नियाँ मर गई हैं उनके पुरुष कहाँ हैं?

    सतयुग की सतियाँ भी शामिल हैं प्रेतात्माओं की इस भीड़ में

    और उनके हाथों में है

    अपनी चिता से बची, जल रही लकड़ियाँ!

    वे ईरान की खुली सड़क पर नग्न दौड़ रही हैं

    और निकल रही हैं सबकी-सब अरब की पवित्र गलियों में

    बनारस के घने बाज़ार तक में घुस गई हैं वो

    और लिख दिया है हर मूत्रालय के बाहर

    ओनली फ़ॉर लेडीज़!

    रातो-रात बदल गए हैं सभी मेडिकल स्टोर्स के बाहर लगे विज्ञापन

    काले अभिशप्त हाथों ने लिख दिया है

    सेनेटरी पैड्स, अब से टैक्स फ्री!

    दुनिया भर की व्यवस्थाओं को धूल चटाकर

    वे ढूँढ़ रही हैं मुल्लाओं को

    वे ढूँढ़ रही हैं सत्ताओं को

    खेल रही हैं खुली सड़क पर

    और बालों को पटक रही हैं सहेलियों के चेहरों पर

    गा रही हैं सामूहिक स्वरों में

    ढोल, गँवार, तुलसी और पापी

    सब है ताड़न के अधिकारी!

    प्रेतात्माएँ

    कायर नैतिकता से भरी

    इस दुनिया पर फैल गई बारूदी गंध हैं

    वे तमाम विमर्शों के सफ़ेद मुँह पर धड़ाम से गिरी

    एक काली अराजकता हैं

    तमाम मान्यताओं के कुएँ में भाँग-सी घुल गई

    एक अवहेलना हैं

    अब स्त्रियाँ भी इस भीड़ में मिली हैं

    मिला रही हैं वो क़दमताल उनके नृत्यों में

    प्रेतात्माएँ धीरे-धीरे ग़ायब हो रही हैं

    अपने नख, दंत

    अपने दौड़ते पैरों को, छुपा दिया है उन्होंने अपने जीवित प्रतिनिधियों में

    समय-सुरंगों की चाभियाँ अब स्त्रियों के हाथों में चमक रही है

    स्त्रियों धीरे-धीरे अपने घरों में लौट रही हैं

    दुनिया के कई हिस्सों में ख़बर है कि प्रेतात्माएँ कहीं नहीं गई हैं

    आपके घर अभी-अभी जो स्त्री लौटी है उसे ध्यान से देखिए

    उसकी आँखों मे जो अवज्ञा की एक छाप है

    वहाँ एक प्रेतात्मा सोई है

    आप सोच सकते हैं कि इन प्रेतात्माओं के पुरुष-प्रेत कहाँ हैं?

    थोड़ा खँगालेंगे तो पाएँगे,

    जो पुरुष-प्रेत इस भीड़ का हिस्सा हो सकते थे

    वह आपके भीतर कब के मरे पड़े हैं

    स्रोत :
    • रचनाकार : वीरू सोनकर
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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