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प्रेमपत्र

prempatr

अनुवाद : राजेंद्र प्रसाद मिश्र

रमाकांत रथ

रमाकांत रथ

प्रेमपत्र

रमाकांत रथ

और अधिकरमाकांत रथ

    अब असंभव है तुम्हें चिट्ठी लिख पाना

    मैं कितना चाहता हूँ खोलूँ खिड़की

    जी भरकर पीऊँ समुद्र-पवन

    उसके बाद बैठ जाऊँ लिखने जो दुनिया का

    सबसे आवेगपूर्ण प्रेमपत्र हो और उसका हर पैराग्राफ

    वर्णन करे एक सुगंधित स्वप्न

    उस स्वप्न के कुछ-कुछ आलोकित गलियारों से

    मैं तुम्हारे होने की जगह जाता

    वह चिट्ठी पढ़ने के बाद

    मैं जानता हूँ तुम समझ जातीं

    मृत्यु का शीतल दुर्ग तोड़ने का जादू,

    मेरी साँसों में सारी ऋतुएँ स्थित हैं,

    जाड़े की रात में ढूँढ़ोगी यदि बेला

    वह मिलेगा मेरे आत्म-समर्पण में।

    किंतु अब असंभव है

    तुम्हें चिट्ठी लिख पाना,

    केवल स्वप्न में अथवा

    स्वप्न-सा निरर्थक लगने में

    तुम दिखोगी, जब आँखें

    खुली होंगी और अंग-प्रत्यंग

    मेरी सचेत इच्छानुसार चलेंगे

    तुम बनोगी इतिहास,

    एक प्रागैतिहासिक शहर

    जो दब गया समुद्र तले और

    जिसकी बिखरी एकाध ईंट

    पड़ जाएगी किसी दर्शक की दृष्टि में।

    मैं भी बदल गया काफ़ी

    मैंने तुम्हें खोया या खोया

    मुझ-जैसे दिखने वाले मेरे अन्य रूप ने

    उसकी आवाज़ मेरी आवाज़-सी थी

    जबकि उसमें थी शीतलता, प्रच्छन्न, विद्रूप।

    वह रूप मैं होऊँ या वह हो

    मेरी आत्मा के छुपे अंगार से बनी

    एक प्रतिमूर्ति,

    मेरा नाम आज उसका नाम है

    उसे मिलेगी आज दुनिया भर की सहानुभूति,

    मैं अँधेरी रात में

    एक पहाड़ से दूसरे पहाड़ तक चलता रहूँगा,

    पूरा आकाश भरा होगा तारों से

    जाने कितनी दूर

    और किस समयांत में

    मैं बनूँगा वह पत्र-लेखक

    कई देहांत के बाद

    जिसकी इतर सत्ताएँ मर जाएँगी,

    निर्मल अतीत के साथ एकाकार होगा

    शून्य भविष्य।

    मुझे लगता है

    शुरू हो गया है मेरा देहांत

    झरने के कल-कल बहते शब्दों में

    संभावना निमंत्रण कुछ भी नहीं है सिर्फ़

    एक शरीर के ध्वस्त होने के बाद का

    विलाप सुनाई देता है और

    मेरे प्रेमपत्र की भाषा भी

    सुनाई देती है अस्पष्ट स्वरों में।

    स्रोत :
    • पुस्तक : तैयार रहो मेरी आत्मा (पृष्ठ 48)
    • रचनाकार : रमाकांत रथ
    • प्रकाशन : भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशन
    • संस्करण : 1998
    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

    ‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।

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