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आज भी

aaj bhi

विष्णु खरे

और अधिकविष्णु खरे

    आज भी होंगे करोड़ों पर अन्याय

    अत्याचार होंगे लाखों पर

    इस शाम भी असंख्य सोएँगे भूखे या आधे पेट

    हज़ारों हज़ार रहेंगे बेआसरा बेसहारा

    औरतें गुज़रेंगी हर संभव असंभव अपमान से

    बच्चे होंगे अनाथ या बेच दिए जाएँगे

    बेशुमार हाथ फैले होंगे दूसरों के आगे

    आज भी वही होगा जो पाँच हज़ार वर्षों से होता आया है

    लोग जारी रखेंगे जन्म या कर्म के कारण ग़ुलामी

    स्वाभावकि कारणों से मरी लाशें मिलेंगी

    जिनकी शनाख़्त करने कोई नहीं आएगा

    आज भी बिताई होगी लोगों ने एक शानदार ज़िंदगी

    हुआ होगा अरबों का धंधा करोड़ों का नफ़ा

    अपने के सिवा किसी की परवाह नहीं की गई होगी

    जो सेवाएँ जिंस जायदादें पहले ही बहुत ख़रीदी जा चुकी हैं

    उन्हें और और ख़रीदा गया होगा

    आज भी लोगों ने पूछा होगा असली ग़रीबी अब है कहाँ

    कहा गया होगा कि पैदाइशी कामचोर ग़लीज़ों को कोई ऊपर ला नहीं सकता

    जात पाँत ऊँच नीच तो कभी के ख़त्म हो चुके

    आज नहीं है तो दस बरस में हो ही जाएगा

    चूड़ों चमारों जंगलियों का राज

    फिर भी हरामख़ोरों का रोना बंद नहीं होगा

    ऐसे शिश्नोदरवादियों के विरुद्ध आज भी बातें हुई होंगी

    कलाओं और संस्कृति की

    सराहा गया होगा धर्म दर्शन परंपरा को

    मुग्ध हुआ गया होगा लोक तथा जनजाति जीवन पर

    उनके हुनरों और शिल्प की बारीकियों में जाया गया होगा

    विश्व के अधुनातन सृजन चिंतन के साथ

    राष्ट्रीय वैश्विकता तथा औदार्य पर

    सतर्क आत्माभिनंदन किया गया होगा

    यथार्थ को स्वीकार करते हुए भी

    शाश्वत मूल्यों पर चिंता प्रकट की गई होगी

    क्योंकि यथार्थ को कितना रोएँ वह तो होता आया है

    कहा गया होगा कि आज भी ऐसे लोग हैं

    जो देश और अस्तित्व के सनातन पहलू समझना नहीं चाहते

    आज भी सिर झुके रहे थे दुख पछतावे कृतघ्नताबोध के साथ

    कि जो किया वह कितना कम था

    हौसला रखा लेकिन काफ़ी था

    आती जा रही हैं नई निराशाएँ और पराजयें

    आज भी अकारथ जाय हास्यापद होना पड़े या अकेला

    जितना कर सकते थे किया उतने जितना ही करो

    अपनी तरफ़ से एक और क्यों जोड़ते हो उनमें जो

    कल भी होंगे करोड़ों पर अन्याय

    स्रोत :
    • पुस्तक : सब की आवाज़ के पर्दे में (पृष्ठ 118)
    • रचनाकार : विष्णु खरे
    • प्रकाशन : राजकमल प्रकाशन
    • संस्करण : 2000

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