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पोदीने की बहक

podine ki bahak

वीरेन डंगवाल

वीरेन डंगवाल

पोदीने की बहक

वीरेन डंगवाल

और अधिकवीरेन डंगवाल

    सब्ज़ी ठेले की बग़ल से भी गुज़रो

    तो तर कर देगी वह ख़ुशबू

    जो इतनी अलौकिक है

    कि आँखों के रास्ते ही दिमाग़ में जा पहुँचती है

    और फिर फेफड़ों से होती हुई

    छा जाती है हस्ती पर।

    जैसे ब्राह्मी आँवला केश तैल की स्वातंत्र्योत्तर सुगंध।

    उन ख़ुशबुओं से कोई ऐतराज़ नहीं मुझे

    जो वैश्वीकरण के इन दिनों इतनी भरपूर है

    कि ठसाठस भरी बसों में भी

    गला दबोच लेती हैं

    झूठ क्यों बोलूँ उनमें से कई तो काफ़ी मनभावन भी हैं

    सौम्य पाशचात्य संगीत की तरह

    लेकिन पोदीने की बात इस सबसे ज़रा अलग है

    जिसे ये हिंदुत्ववादी तो हरगिज़ नहीं समझ पाएँगे ׃

    महीना जून का है

    लू लपटाए ले रही है कचहरी में

    पाकड़ के भारी दरख़्त को

    घनी छाँह में चिड़ियों की सूखी-ताज़ा

    दोनों तरह की बीट से रँगी

    प्रागौतिहासिक काष्ठकला के निरभ्र नमूने सरीखी

    तख़्तों की बनी कुर्सी पर बैठ समोसा-चटनी खाते

    सन पचहत्तर से प्रैक्टिस करते उन लगभग असफल वकील साहब को देखो—

    मौसमों की मार खाए

    काले कोट में

    किसी पुराने छत्ते की तरह ललछौंहे और जर्जर

    मुश्किल से हाथ हाए उस फटेहाल

    मुवक़्क़िल को पूरी तरह चबा जाने की

    बेताबी है उनकी अन्यथा निरीह आँखों में

    बेमेल चश्मे से मढ़ी ये आँखें

    कभी भरी रहती थीं

    समाजवाद राममनोहर लोहिया भारतीय संविधान

    और न्यायपालिका आदि की

    अजेय सर्वोच्चता की जगमग से।

    फ़िलहाल उनमें मोतियाबिंद भर रहा है।

    इस समय अगर वो कुछ चमकती दीख रही हैं

    तो उसका कारण वह थोड़ा चटोरपन और थोड़ी तृप्ति है

    जो उपजी उस चटनी से

    जिसे तैयार किया अलस्सुबह के एकांत में

    दस वर्षीय प्रशिक्षु कारीगर ने

    महर्षि चरक की पसंदीदा इस सुगंधित शीतल बूटी के साथ

    हरी मिर्चें इमली का गुदा और गुड़ पीसकर।

    यह अलग बात कि प्रशिक्षणार्थी के

    गालों की चुटकी भर रहा था

    उस समय उद्दंड अधेड़ वरिष्ठ कारीगर बार-बार

    जिससे ग्लानिग्रस्त उस असहाय बालक के

    आँसू ढुलके पड़ रहे थे।

    वे भी मिले हों शायद पोदीने की

    इस चटनी में।

    इस प्रसंग को पाद-टिप्पणी ही जानें।

    स्रोत :
    • पुस्तक : कविता वीरेन (पृष्ठ 209)
    • रचनाकार : वीरेन डंगवाल
    • प्रकाशन : नवारुण
    • संस्करण : 2018

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