वह अपना फटा वल्कल लपेटे
दूर से ही देखता रहता है बस्ती को
और जाने क्या हर समय गिनता रहता है
अपनी अँगुलियों पर।
किसी अवधूत योगी की तरह
भोग और आडंबर की भीड़ से दूर
उसे पसंद आते हैं
सुदूर सिवान, जंगल और वीराने।
लेकिन बहुत गहरी हैं उसकी सामाजिक जड़ें
जो जाती हैं जनपदों के पाँवों तक
और भरती हैं उनमें
पुरखों की परंपराओं की धमक।
अलगू और जुम्मन की खानदानी रंजिशों की गाँठ
पलक झपकते सुलझाई हैं
उसकी बूढ़ी काँपती अँगुलियों ने
और पोंछा है बिलखती खालाओं के आँसू।
कारिकावली* में वह अश्वत्थ है—
अश्वत्थम् जलमस्यास्ति।
और उसमें जाने क्या है हाथियों के लिए
जो बनाता है उसे गजाशन।
संस्कृतियाँ जब घुटनों पर थीं
तो उनके प्रथम क़दम में अवलंब बनी थीं
उसकी काँपती अंगुलियाँ।
काल के कई दस्तावेज़ों पर
अपनी इन्ही काँपती अँगुलियों से
किये हैं उसने अपने साक्षी होने के हस्ताक्षर।
ऋचाओं से लेकर लोक-लोरियों तक में
है उसका सार्थक हस्तक्षेप।
वह बोधिद्रुम है
और प्रतीक है तथागत की संबोधि का।
वह प्रतीक है महायान का
और उसकी जड़ों में फैला हुआ है
सनातन धर्म का तरल—
अश्वत्थ: सर्ववृक्षाणाम्।**
वह चलपत्र है
और तुलसी बाबा के लिए तो
मन की चंचलता का सर्वोत्तम उपमान।
वह विषपाई है
और पीता रहता है अहर्निश
शंकर सदृश पूरी धरती का गरल।
***
* कारिकावली—
विश्वनाथ न्याय पंचानन (1634 ई.) कृत भाषा परिच्छेद एक दार्शनिक ग्रंथ है जिसे कारिकावली या न्याय कारिकावली भी कहते हैं। यह न्याय-वैशेषिक दर्शन का ग्रंथ है। इसमें शब्दों की विशद व्युत्पत्ति भी बताई गई है।
** (1)अश्वत्थ: सर्व वृक्षाणाँ देवर्षीणां च नारदः।
गन्धर्वाणां चित्ररथः सिद्धानां कपिलो मुनिः॥
(गीता)
(2) अश्वत्थ: सर्ववृक्षाणां, मूलतो ब्रह्मरूपाय मध्यतो विष्णुरूपिणे, अग्रतः शिवरूपाय अश्वत्थाय नमो नमः॥
- रचनाकार : अखिलेश जायसवाल
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
Additional information available
Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.
About this sher
Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.
rare Unpublished content
This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.