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पीछे छूटी हुई चीज़ें

pichhe chhuti hui chizen

नरेश सक्सेना

नरेश सक्सेना

पीछे छूटी हुई चीज़ें

नरेश सक्सेना

और अधिकनरेश सक्सेना

    बिजलियों को अपनी चमक दिखाने की

    इतनी जल्दी मचती थी

    कि अपनी आवाज़ें पीछे छोड़ आती थीं

    आवाज़ें आती थीं पीछा करतीं

    अपनी ग़ायब हो चुकी

    बिजलियों को तलाशतीं

    टूटते तारों की आवाज़ें सुनाई नहीं देतीं

    वे इतनी दूर होते हैं

    कि उनकी आवाज़ें कहीं

    राह में भटक कर रह जाती हैं

    हम तक पहुँच ही नहीं पातीं

    कभी-कभी रातों के सन्नाटे में

    चौंक कर उठ जाता हूँ

    सोचता हुआ

    कि कहीं यह सन्नाटा किसी ऐसी चीज़ के

    टूटने का तो नहीं

    जिसे हम हड़बड़ी में बहुत पीछे छोड़ आए हों!

    स्रोत :
    • पुस्तक : सुनो चारुशीला (पृष्ठ 18)
    • रचनाकार : नरेश सक्सेना
    • प्रकाशन : भारतीय ज्ञानपीठ
    • संस्करण : 2012

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