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भारतवर्ष

bharatwarsh

मैथिलीशरण गुप्त

और अधिकमैथिलीशरण गुप्त

    मस्तक ऊँचा हुआ मही का,

    धन्य हिमालय का उत्कर्ष।

    हरि का क्रीड़ा-क्षेत्र हमारा,

    भूमि-भाग्य-सा भारतवर्ष॥

    हरा-भरा यह देश बना कर

    विधि ने रवि का मुकुट दिया,

    पाकर प्रथम प्रकाश जगत ने

    इसका ही अनुसरण किया।

    प्रभु ने स्वयं ‘पुण्य-भू’ कह कर

    यहाँ पूर्ण अवतार लिया,

    देवों ने रजद सिर पर रक्खी,

    दैत्यों का हिल गया हिया!

    लेखा श्रेष्ठ इसे शिष्टों ने,

    दुष्टों ने देखा दुर्द्धर्ष!

    हरि का क्रीड़ा-क्षेत्र हमारा

    भूमि-भाग्य-सा भारतवर्ष॥

    अंकित-सी आदर्श मूर्ति है

    सरयू के तट में अब भी,

    गूँज रही है मोहनमुरली

    ब्रज वंशीवट में अब भी।

    लिखा बुद्ध-निर्वाण-मंत्र जय—

    पाणि-केतुपट में अब भी,

    महावीर की दया प्रकट है

    माता के घट में अब भी।

    मिली स्वर्ण-लंका मिट्टी में,

    यदि हमको गया अमर्ष।

    हरि का क्रीड़ा-क्षेत्र हमारा

    भूमि-भाग्य-सा भारतवर्ष॥

    आर्य, अमृत संतान, सत्य का

    रखते हैं हम पक्ष यहाँ,

    दोनों लोक बनाने वाले

    कहलाते हैं दक्ष यहाँ।

    शांतिपूर्ण शुचि तपोवनों में

    हुए तत्व प्रत्यक्ष यहाँ,

    लक्ष बंधनों में भी अपना

    रहा मुक्ति ही लक्ष यहाँ।

    जीवन और मरण का जग ने

    देखा यहाँ सफल संघर्ष।

    हरि का क्रीड़ा-क्षेत्र हमारा

    भूमि-भाग्य-सा भारतवर्ष॥

    मलय पवन सेवन करके हम

    नंदनवन बिसराते हैं,

    हव्य भोग के लिए यहाँ पर

    अमर लोग भी आते हैं!

    मरते समय हमें गंगाजल

    देना, याद दिलाते हैं,

    वहाँ मिले मिले फिर ऐसा

    अमृत, जहाँ हम जाते हैं!

    कर्म हेतु इस धर्म भूमि पर

    लें फिर-फिर हम जन्म सहर्ष।

    हरि का क्रीड़ा-क्षेत्र हमारा

    भूमि-भाग्य-सा भारतवर्ष॥

    स्रोत :
    • पुस्तक : मंगल-घट (पृष्ठ 54)
    • संपादक : मैथिलीशरण गुप्त
    • रचनाकार : मैथिलीशरण गुप्त
    • प्रकाशन : साहित्य-सदन, चिरगाँव (झाँसी)
    • संस्करण : 1994

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