Font by Mehr Nastaliq Web

देहरिसँ निकलल डेग

फेर लौटत नहि लौटत

ठेकान नहि।

प्रतीक्षा बनि प्रश्न

नाचि रहल अछि

आङनमे बैसल

लोकक आँखिमे।

पुतहुओ भऽ सकैये

बेटियो भऽ सकैये

बहिनो भऽ सकैये

सभ भऽ सकैये

जे ओकरा भेटल अछि।

ओ,

ठाढ़ अछि

देहरिक पार—

अकाश कतेक सुन्दर

फूल कतेक सुन्दर

धरती कतेक सुन्दर

जीवनक प्रति

संघर्ष कते सुन्दर!

आङनमे बैसल

लोक जकाँ

ओकरा भेटल छलै

तखन जखन पार कयने छल

देहरि।

गल्लीमे उतरैत काल

शुरु भेल सीटी

तेज होइत गेल

जेना-जेना बढ़ैत रहल

गल्लीमे,

तेज, आओर तेज, कर्कश

ओकर डेग

सड़कपर परितहिं

शान्त अछि।

सभ शान्त अछि।

आश्चर्यचकित अछि

सीटीबला

सीटीक विफलतापर।

विश्वासे नहि भऽ रहल छै ओकरा।

मुदा आङनक प्रतीक्षा

जारी अछि अखनो

एकरा संगहि

कयल जा रहल अछि

देहरि ऊँच

आँगन घेरायल जा रहल अछि

नम्हर-नम्हर देवालसँ।

ओना

हवाके रोकलकैये के?

ठीके,

के रोकि सकलैये, के?

स्रोत :
  • पुस्तक : समय गीत (पृष्ठ 32)
  • रचनाकार : रोशन जनकपुरी
  • प्रकाशन : मैथिली विकास कोष, जनकपुर
  • संस्करण : 2013

Additional information available

Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

OKAY

About this sher

Close

rare Unpublished content

This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

OKAY