एक
काले जंगलों से बहकर आती हवा हूँ
घमासान रक्तपात की ख़ामोशी
कीड़ों की अधरात की आवाज़
पदचाप किसी बनैले जंतु की
दुख किसी बारिश की शाम का
आकर घुस गया पेट के रस्ते
हलक़ की जलती डकार तक
और इधर
भागती कार की धूल का कोई कण
आँख में घुसा
तो बस गया वहीं का वहीं
हरहमेश किरकिराती आँख लिए
गालियों से भरी भाषा हूँ
सुबह-सुबह
मंदिर जाते भक्तों की भीड़ में
अपसगुन-सा कुछ रचने का षड़यंत्र
और अभी
दूसरे ही दूसरों के समय में
हिसाब हूँ चौकस
अपने होने की अंतिम जर्जरता का
भविष्य
क़ब्र की शांति का
गली में खेलते बच्चों की खिलखिल
औरतों की गप्पबाज़ी के दैनिक दृश्य में
अदृश्य कामकीट की तरंग हूँ
अँधेरे में, काले केशों में मुँह छिपा सिसकता
लिखता हूँ अपना प्रेम
बुढ़ापे की असमर्थता में
विचित्र समुद्रफेन में बिखरती लहर में
भिगोता अपने पाँव
और देखता लंबे केले के पत्तों से लगते
किसी दूसरे पेड़ की
पत्ता निकलने वाली जगह से
निकलती कली हरिद्रारंगी
गाढ़े रक्तवर्ण में जागती
सुबह की पूजा में
माँ का हवन
दो
बहन का योगासन
और अख़ीर तक साथ देने वाले
कुत्ते की आँखों के नीचे की कालिमा
शांत हत्याकांड के नवीन महाभारत में
विवश धर्मराज हूँ
टेकरी को हिमालय की तरह सोचते
दिमाग़ की भागमभाग में लस्त
ताकता रहता हूँ
अख़ीर के संगवार को अपलक
- रचनाकार : प्रभात त्रिपाठी
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
Additional information available
Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.
About this sher
Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.
rare Unpublished content
This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.