सावन झरता है
जैसे पेड़ों पर उतरती हो रहमत
मीलों तक फैली है जलवायु
सृष्टिकर्ता का दूरदर्शन बूँदों में उतरता है घास पर
सताई हुई धरती पर इल्हाम बरसता है
ख़ुदा जिन्हें तौफ़ीक़ देता है उन्हें सब्ज़ियाँ खाने को मिलती हैं
और मसख़री ख़ुदा तक पहुँचने का आसान रास्ता है
प्रकृति तू हमें भय से मुक्त कर
और जो खुलकर हँस नहीं सकतीं
वे क़ौमें नष्ट हो जाती हैं
सूरज के सामने सभी ग्रह अस्त हो जाते हैं
हालाँकि बुध काफ़ी देर तक नहीं मानता
और आदमी की खोपड़ी में घुस जाता है
बादलों के सामने सूरज अस्त हो जाता है
और आदमी बादलों के सामने अस्त नहीं होता
जिस तरह आलू को सब्ज़ी और पालक को हरी सब्ज़ी कहना भाषाई बेवक़ूफ़ी है
उसी तरह ईश्वर को सृष्टिपालक कहना आध्यात्मिक सूझबूझ
कि पालक और सृष्टिपालक का समुचित सेवन
दीन और दुनिया दोनों को फ़िट रखता है
और इतने तरह की सब्ज़ियाँ बना दी हैं उसने
कि हम तो उसका ठीक से शुक्रिया भी अदा नहीं कर सकते
कि ईश्वर ने कभी अवतार नहीं लिया
या फिर वह हर जन्म में छुपा होता है
और पुत्र तो उसके सभी बराबर हैं
और क्या पता यह बात ईश्वर को भी पता न हो
कि वह है भी या नहीं
हालाँकि उसका इतिहास पढ़कर ऐसा लगता है
कि उस पर श्रीमद्भगवत्कृपा रही होगी
कि नेकी के रास्ते परलोक सँवरता है
और बदी के रास्ते इहिलोक
हालाँकि जो बदी करते हैं वे कभी ठीक से सो तक नहीं पाते
फिर वे सँवारते क्या रहे ज़िंदगी भर
इंसानों ने ऐसी बहुत-सी किताबें लिखीं
जिन्होंने इंसानों को नेकी के रास्ते पर बुलाया
लेकिन उन्हीं की कृपा से इंसान अक्सर बदी के रास्ते चला
कि अपराध में छुपा जो इंसाफ़ है
और भद्रता में छुपा जो अपराध है
इसे कोई सिनेमा नहीं दिखा सकता
कि हम पापियों को नष्ट किए जाते हैं
और पाप नष्ट नहीं होता
और अख़बारों में बनाने-बिगाड़ने वाले नहीं जानते
कि ईश्वर ने कभी अख़बार नहीं पढ़ा
कि पृथ्वी में कितना पारा है
यह तो तभी पता चल गया था
जब पिंड में अंड आया और प्राणों ने ओढ़ी प्रोटीन की चादर
कि कुछ शर्तों से ही अगर कविता हो जाती
तो कौन हाथ-पैर मारता
कुएँ में गिरे तो काम से बचे
कि चंद्रमा जिसकी गति मन की तरह चंचल है
और जो पृथ्वी पर द्रव-स्थैतिकी का नियंता है
इस समय होगा कहीं बादलों के पीछे
कि शाइरी अल्ला मियाँ का सीरियल है
जो सारी अज्ञात चैनलों पर एक साथ चलता है
की गेहूँ और चावल जैसे और भी तमाम सीरियल
ईश्वर ने इस धरती को दिए
लेकिन उन पर बदी का क़ब्ज़ा है
कि गेहूँ और चावल के विजेता शाइरी पर क़ब्ज़ा नहीं कर सके
आत्मा देखती है जो मन नहीं देखता
कि जल में उतरता है अंतरिक्ष
जैसे बुध उतरता हो चंद्रमा में
शाइर एक छोटा मोटा नबी होता है
औघड़ प्रवेश करता है ईश्वर की सत्ता में
ऋतुओं ने गर्म तवे पर रखी है बर्फ़
भाप से उठती है नबूवत
जड़ें तोड़कर उड़ती है सौ पंखों की सौदामिनी
दिशाओं में काम करती हैं चुंबकीय रेखाएँ
और यहाँ सावन है
हवाओं में बनते हैं ऋतुमहल
और जलवायु में जो काव्य है
वह पृथ्वी के पारे पर गिरता है रिमझिम।
- रचनाकार : संजय चतुर्वेदी
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
Additional information available
Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.
About this sher
Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.
rare Unpublished content
This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.